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(१८) छहा श्रोही । रिउमइ विउलमई मण, नाणं के. वल मिगविहाणं ॥ ८ ॥
अवधि ज्ञान के ६ भेद । . .१ अनुगामी-जो ज्ञान सदा साथ रहता है।
२ अननुगामी-जो ज्ञान सदा साथ नहीं रहता है। ३ वर्द्धमान-जो निरंतर बढता रहता है।
४ हीयमान-जो दिन प्रतिदिन घटता रहता है। • ५ अप्रतिपाती-जो ज्ञान निरंतर रहता है। ।
६ प्रतिपाती-जो ज्ञान आकर चला जाता है।
किन्तु इन सवका वर्णन विस्तार से सूत्रों से समझना चा. हिये अव द्रव्य क्षेत्र काल और भावकी अपेक्षा से समझाते हैं। - (क) द्रव्य से अवधि ज्ञानी अनंत रूपी द्रव्यों को जानते और देखते हैं । उत्कृष्ट से सर्व रूपी द्रव्यों को जानते हैं और देखते हैं।
:( ख ) क्षेत्र से अंगुलका असंख्यातवां भाग जानते है 'और देखते हैं। और उत्कृष्ट से लोकाकाश के रूपी पदार्थों को जानते हैं और देखते हैं । अलोक में आकाश के अतिरिक्त कुछ नहीं है। नहीं तो वहां परभी रूपी पदार्थों को असंख्यात लोकक्षेत्र प्रमाण तक जाने और देखे ।