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.. .७ संघात श्रुत-जो गति आदिः चौदह मार्गणाद्वार में से मनुष्य आदि कोई भी गति के जीव.का. ज्ञान हो उस को संघातश्रुत कहते हैं। .. ..
८ संघात समासश्रुत-ऐसे दो चार गति के जीवों के ज्ञान को समासश्रुत ज्ञान कहते हैं। ............ ___ प्रतिपत्तिश्रुत-गति आदि चौदह मार्गणा में से एक मा
प्रणा में संसार के सर्व जीवों के भेद समझना इसको प्रतिपत्ति · श्रुत कहते हैं।
। १० प्रतिपत्तिसमासंश्रुत-ऐसे दो चार मार्गणा में जीव के भेदों का वर्णन समझना इसको प्रतिपत्ति समासश्रुत कहते हैं।
११ अनुयोग श्रुत-सत्पद प्ररूपणा में जीव आदिक पदार्थों का विवरण करना इसको अनुयोगश्रुत कहते हैं। ..
१२ अनुयोग समासश्रुत-ऐसे दो चार पदार्थों का भिन्न-२ रीति से वर्णन करना इसको अनुयोग. समासचुत कहते हैं। . : १३ प्राभृत भाभृत श्रुत-दृष्टिवाद नाम बारहवें अंग में ‘भिन्न २ प्रकरणों के स्थान में छोटे २ विभाग हैं ऐसे एक ' विभाग के ज्ञान को प्राभृतश्रुत कहते हैं। :...::...:. . .. १४ प्राभृत प्रामृत समास श्रुत-ऐसे दो चार विभाग के , ज्ञान को प्राभूत प्रामृत समास श्रुत. कहते हैं।...... ... : . ६ मार्गरयां द्वार-(देखो नवतत्व ] सम्पूर्ण जीव हन्यका जिसके जरिये विचार किया जावे-उनकी संख्या १४ है।