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६ १६.)
(ग) काल से प्रावली का असंख्यातवां भागः परिमाण अतीत अनागत काल जानते हैं और देखते हैं । उत्कृष्ट से अभ संख्यात काल चक्र समय परिमाण अतीत अनागत रूपी द्रव्य के विषय को जानते हैं और देखते हैं।
(घ) भावसे अनन्तं भावको जानते हैं, और देखते हैं। उत्कृष्ट से भी अनन्त भाव को जानते हैं और देखते हैं।
जैसे मतिज्ञान और श्रुतज्ञान के विरुद्ध मतिज्ञान और श्रुत अज्ञान होते हैं।
ऐसे ही अवधिज्ञान के विरुद्ध विभंग ज्ञान होता है अर्थात् बीतराग भाषित तत्वज्ञान पर जहांतक श्रद्धा नहीं वहांतक अ-- वधिज्ञान से कुछ सत्यं जाने और कुछ असत्य भी जाने । ___ अतएव मति, श्रुत और अवधि इन तीन ज्ञानों के तो दो २ भेद होगये किन्तु मनः पर्यव ज्ञान और केवल ज्ञान में मिथ्यात्व का अंश न रहने से इन दोनों के इसप्रकार के भेद नहीं होते। .: मनके पर्यायों को जानने को मनः पर्यव ज्ञान कहते हैं व स्तु में रूपान्तर होने को पर्याय (पर्यव) कहते हैं। :: मुनिराजों को चारित्र लेने पश्चात् अप्रमाद अवस्था में शुद्ध ' भाव से संयम पालने पर मनःपर्यव-ज्ञान होता है । : ..:
१ श्वासोश्वास से भी छोटा काल प्रमाण...
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