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मनः पयत्रज्ञान कदा भूद हः .
..किंतु जम्बू स्वामी के निर्वाण पश्चात् भरत क्षेत्र में नहीं होता है महाविदेह क्षेत्र में होता है.. ......
ज्ञान के दो भेद हैं: जुमती मनः पर्यवज्ञान-एक मनुष्य. मनमें कोई बात बिचाररहा हो उसको थोड़े पर्यायों की जान लेने का नाम रुजुमती मन पर्यवज्ञान हैं..:.::....
२ विपुलंमती मनं पर्यवज्ञान किसी के मन की बात को. अनेक पर्यायों में जानलेने का नाम विपुलमती मनः पर्यवज्ञान है... - अब दूव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से समझाते हैं. ... (क) द्रव्य से रुजुमति अनंतानंद प्रदेश वर्गणा वाले मन द्रव्य को जानता है और विपुल. मती बहु प्रदेशी अति सूक्ष्ममनं .द्रव्य को जानते हैं..........
(..) क्षेत्र से रुजुमती तिरबी दिशा में अड़ी द्वीप पर्यंत : जानते हैं और उंचाई में ज्योतिषि देवताओं के रहने के देव
लोक के उपर के तलेंतक जानते हैं और नीचाई में विजय तक जानते और देखते हैं अर्थात् नौ सो योजन ऊंचे और नौ सी योजन नीचे जानते हैं और देखते हैं और विपुलमती अढीद्वीप बाहर अहाई अंगुल अधिक शुद्ध जानते हैं और देखते हैं, : . १ महाविदेह का एक भाग है.::
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