Book Title: Karm Vipak Pratham Karmgranth
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 43
________________ (२५) श्रुतज्ञानी श्रुतज्ञान से वृद्धि करते. २. केवली के अनुसार अभिधेय पदार्थों का स्वरूप जानते हैं। ' . ... . .. केवलज्ञानी सबसे अधिक सम्पूर्ण जानते हैं और निगोद का जीव सबसे कम जानता है। : ___ केवलज्ञान पर पूर्ण आवरण होता है और दूसरे चार ज्ञानों पर अपूर्ण आवरण होता है इसलिये केवलज्ञान का आवरण सर्वघाती और दूसरे अन्य ४ ज्ञानों का आवरण देशघाती कहे जाते हैं। . दर्शनावरणीय कर्म के ६ भेद .... चार प्रकार के आवरण और पांच प्रकार की निद्रा इस प्रकार दर्शना वरणीय कर्म के ह भेद होते हैं.। . चार प्रकार के आवरणं । .: १ चक्षुदर्शनावरणीय, २ अचक्षुदर्शनावरणीय, ३ अबघिदर्शनावरणीय, ४ केवलदर्शनावरणीय । : • पांच प्रकार की निद्रा १, निद्रा, :२. निद्रानिद्रा, ३. प्रचला, .४ प्रचलाप्रचला, और ५ थीनदी (स्त्यानदि)। : पदार्थ का स्वरूप जानने को ज्ञान कहते हैं और सामान्य रीति से जानने को और देखने को: अर्थात् विशेष रूप से न जा

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