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१५ प्राभृत, श्रुत- दृष्टिवाद नामक बारहवें अंग में अनेक
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विभागों का एक भाग होता है जैसे अनेक उद्देशा मिलकर अध्ययन बनता है ऐसेही अनेक प्राभृत प्राभृतों का एक प्राभृत होता है. उसके ज्ञान को प्राभृत श्रुत कहते हैं ।
१६ प्राभृत समास श्रुत - ऐसे दो चार माभृतों के ज्ञान को प्राभुत समास श्रुत कहते हैं ।
१७ वस्तु श्रुत- अनेक प्राभृतों का एक वस्तु होता है उस एक वस्तु के ज्ञान को वस्तु श्रुत कहते हैं ।
१८ वस्तु समास श्रुत - ऐसे दो चार वस्तुओं के ज्ञान का नाम वस्तु समास श्रुत हैं ।
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१६. पूर्वश्रुत – अनेक वस्तुओं का एक पूर्व होता है उस 'एक पूर्व के ज्ञान को पूर्वश्रुत कहते हैं ।
२० पूर्व समाम श्रुत - ऐसे दो चार पूर्व के ज्ञान को पूर्व समास श्रुत कहते हैं ।
यहां पर संगोपात १४ पूर्व के नाम भी लिख देते हैं । १ उत्पाद, २ अग्रायणीय, ३. वीर्यप्रवाद, ४ अस्ति प्रवाद, ५ ज्ञानप्रवाद, ६ सत्यप्रवाद, ७ आत्मप्रवाद, ८ कर्ममवाद, प्रत्याख्यान प्रवाद, १० विद्यामवाद, ११ कल्याण, १२ प्राणवाद. १३ क्रियाविशाल, १४ लोकबिंदुसार ।
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ऋण गामि वड्ढमाणय: पडिवाईयर -विहा
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