Book Title: Karm Vipak Pratham Karmgranth
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 33
________________ (१५) . . १४ अंग वाह्य श्रुत-उपांग, उत्तराध्ययन दशकालिक आदि शास्त्रों के ज्ञान को अंग वाह्य श्रुत कहते हैं ।" .. ... पज्झय अक्खर पयसं, धाय पडिवात्त तय अणु ोगो । पाहुड पाहुड, वत्थु छुव्वाये ससमासा ।॥ ७ - श्रुत ज्ञान के २० भेद । १ पर्यायश्रुत-सूक्ष्म निगोद के जीव को जन्म के प्रथम समय में ज्ञान होता है और उससे दूसरे समय में जितना ज्ञान बढता है वह पर्यायश्रुत है। .... २ पर्यायसमासश्रुत-ऐसे दो चार, पर्यायश्रुत को पर्याय समासश्रुत कहते हैं। ३ अक्षरश्रुत-अकारादि लब्धि अक्षर को अनेक व्यंजन पर्याय सहित जानने का नाम अक्षरश्रुत है । . . . . ४ अतर समासश्रुत-ऐसे दो चार लब्धि अक्षरों का ज्ञान होने का नाम अक्षर समासश्रुत है। . .. ... .५ पदश्रुत-'अकारादि दो चार अक्षर भिन्न २.अर्थ के वाचक हो इसका नाम पदश्रुत है.।. . ..:: : : : ....६ पद समासश्रुतः ऐसे दो चार पदश्रुत का नामः पद समासश्रुत है।

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