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इन २८ भेदों के प्रत्येक के बारह २ भेद भी होते हैं जैसे कहीं वाजिन बजरहा हो उस समय १ कोई थोड़ा सुने २ कोई ज्यादा सुने ३ कोई धीर सुने ४ कोई जोर से सुने ५ कोई जल्दी सुने ६ कोई देर से सुने ७ कोई चिन्ह से सुने ८ कोई बिना चिन्ह भी सुने है कोई शंका सहित सुने १० कोई शंका रहित सुने ११ कोई एकवार कहने से सुने १२ कोई अनेकवार कहने से सुने।
उपरोक्त अनुसार प्रत्येक के बारह २ भेद होने से २८x १२:३३६ तीनसो छत्तीस भेद होते हैं। . . इसके अतिरिक्त ४ प्रकार की बुद्धि भी होती है।
• १ उत्पातिकी-जो तात्कालिक बुद्धि कार्य करने में सहायक होती है वो उत्पातिकी बुद्धि है। . . २.वैनायकीवुद्धि-जो गुरु सेवा से प्राप्त होती है वो वैनयिकी बुद्धि है।
३ कार्मिकीवुद्धि-जो अभ्यास करने से प्राप्त होती है वो कार्मिकी बुद्धि है। ." . : . .:.४ पारिणामिकाबुद्धि-जो दीर्घायु होने पर संसार में अनुभव लेने से प्राप्त होती है वो पारिणामिकी बुद्धि है.। . : ..
पूर्वोक्त ३३६ भेदों को श्रुत निःसृत मतिज्ञान के भेद केहते है । और इन चार प्रकार की वृद्धि के भेदों को अश्रुत निः