Book Title: Karm Vipak Pratham Karmgranth Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 6
________________ ( ६ ) बुद्धिमान पाठकों का कर्त्तव्य है कि विवेक बुद्धि द्वारा कर्म वादका सद् ज्ञान प्राप्त करें और ज्ञान सहित ध्यान तपादि उत्तम क्रियाओं से सोपक्रम कमों का अंत करें और निरुपक्रम कर्मों का फल भोगते समय अशुभ परिणाम न रखकर शुभ परिणाम रखें जिंससे उन शुभ परिणाम का शुभ फल ऋद्धि सिद्धि अनेक सुख भोगे पश्चात् सोपक्रम और निरूपक्रम दोनों कर्मों का अंत कर कर्म मुक्त होकर मोक्ष सुख प्राप्त करें । निवेदन । मुझमें इतनी विद्वता कहां है! कि मैं किसी ग्रन्थ को प्राकृत भाषा से हिंदी भाषान्तर लिखसकूं किंतु परमगुरुवर्य श्री १०८ श्री माणिक मुनिजी महाराज को अनेकानेक धन्यवाद है जिन की मुख्य सहायता से और कृपा दृष्टि से मैं इस कार्यको करने में समर्थ हुआ हूं । . इस ग्रन्थ में जो अशुद्धियें रह गई हों उनको शुद्धिपत्र से सुधारकर पढियेगा इसके अतिरिक्त भी यदि कोई अशुद्धियें रही हों तो उनके लिये क्षमा मांगते हैं और उनको 'गीतार्थो से समझ कर पढियेगा. मिती आसोज शुक्ल १५ बुधवार . संवत् १६७३ हिन्दी भाषान्तर लेखक.Page Navigation
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