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. . ५ केवलज्ञान-जो संपूर्ण.निरावरण तीनों काल.का एकही .समय में निश्चल निरंतर ज्ञान रहे वो केवल ज्ञान है। . : ..
मतिज्ञान और श्रुतज्ञान 'इंद्रिय प्रत्यक्ष हैं और अवधि ज्ञान, मनः पर्यवज्ञान और केवल ज्ञान आत्म प्रत्यक्ष हैं। ' मति, श्रुत, अवधि, और मनापर्यव इन चार ज्ञानों में उपयोग रखना पड़ता है किन्तु केवल ज्ञान में न उपयोग की आवश्यक्ता है और न इन्द्रियों की। . उस ही केवल ज्ञान को धारण करने वाले सर्वज्ञ के वचन प्रमाणे भूत होते हैं जैन शास्त्रों के मूल . उत्पादक वही सर्वज्ञ केवल ज्ञानी हैं और उन्हीं के पचनानुसार सूत्रों की रचना
· मतिज्ञान के २८ भेदः । - १ व्यंजन अवग्रह-व्यंजन अवग्रह चार प्रकार का होता है स्पर्शद्रिय व्यंजन अवग्रह, रसेंद्रिय व्यंजन अवंग्रह, घ्राणेंद्रिय व्यंजन अवग्रह: और श्रोत्रंद्रिय व्यंजन अवग्रह । मन और चक्षु का व्यंजन अवग्रह नहीं होता। . . . . .
, स्पर्श, रस, धाण और श्रोत्र इन चार इन्द्रियों का पदार्थ के साथ स्पर्श होते ही प्रथम "ही. जो ज्ञान होता है वों व्यंजन अवग्रह है उपरोक्त चारों इन्द्रियों से जो स्पर्श होते ही प्रथम