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(.७ ) संग्रहणी सूत्र हिन्दी भापान्तर सहित प्रकट कराये कि जिसको पढकर भव्य जीव लाभ उठावें इस कार्य में डा० हरकचंदजी की धर्म पत्नी की अनुमोदना भी सराहनीय है क्योंकि हमारी जाति मस्त्रियां प्रायः ब्राह्मणों को मिष्टान खिलाने में ही परलोक गत जीवों को सुख मिलता मानती है. .
जैन जाति में सैकड़ों रुपैये स्वर्गवासी महानुभावों के नाम । पर व्यय होते हैं पर किस प्रकार? संडों मुसंडों को मिठाई खि. लाने में, मोसरादि करने में, ब्राह्मणों के जिमाने में वा स्मार्थ छतरियां बनवाने में परन्तु जैन साहित्य तथा धर्म से अनभिज्ञ रहकर धर्म त्यागने वालों को बचाने के लिये हिन्दी भाषा में ग्रन्थ प्रकट करने में, जाति की दशा सुधरने तथा देशका उद्धार करने को शिक्षा प्रचार के लिये कन्याशाला स्कूल इत्यादि उपयोगी संस्थाओं की सहायता में क्या व्यय होता है ? तब ही तो जैन जाति में पुरुष रत्न उत्पन्न नहीं होते. क्या डाक्दर हरकचंदजी के पिता और धर्मपत्नी का अनुकरण करके अन्य भाई अपने स्व
वाली बन्धुओं के स्मार्थ रुपया ऐसे शुभ कार्यों में व्यय करके कि जिन से वास्तविक लाभ हो पुण्योपार्जन करेंगे ?
अनुवादक
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