Book Title: Karm Vipak Pratham Karmgranth Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 3
________________ ( ३ ) " ईश्वर का जगत्कर्त्ता न होना " आदि विषयों का निर्णय निर्भर है । अन्य धर्मों और जैन धर्म में मुख्य यही भेद हैं: कि जैन धर्म में स्याद्वाद ( अनेकांत ) शैली मानी गई है और जड़ और चेतन रूप यह सर्व जगतः अनादि माना गया है किंतु नैनेतर धर्मों में एकान्तवाद और जगत्कर्त्ता ईश्वर ही माना. गया है । संसार में जीवों को हम भिन्न भिन्न दशा में देखते हैं कोई राज्य लक्ष्मी भोग रहा है तो कोई दारिद्र्य दुख भोग रहा है. कोई पंडित होकर प्रतिष्ठा प्राप्त करता है तो कोई मूर्ख कहा जाता इत्यादि बातों से स्वतः सिद्ध हो जाता है कि जीवों का इस दशा से किसी पूर्व दशा ( पूर्व भव) से संबंध है यह संबंध किन कारणों से हुवा हैं. इस विषय में संसार में दो मत हैं । ( १ ) जैनेतर धर्मों में किसी का तो संतव्य है किं जीव सर्व सुख दुःख, ईश्वरेच्छानुसार ही भोगते हैं जीवों का किसी पूर्वदशा ( पूर्व जन्म ) से कोई संवन्ध नहीं है और किसी २ का मत है कि ईश्वर जीवों का जन्म मरण करने वाला तो है. किन्तु उनके शुभाशुभ कर्मानुसार न्यायाधीश की तरह न्याय पूर्व उनको सुख दुख देता है इस प्रकार कोई पुनर्जन्म को मानते हुवे और कोई पुनर्जन्म को न मानते हुवे न्यून २ भिनता से सृष्टि का आदि कर्त्ता पालन कर्त्ता न्यायानुसार शुभ 1Page Navigation
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