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प्रस्तावना ] योग संबंधी आजनो प्रत्येक ज्योतिषी कोइ पण शुभ कार्यना मुहूर्तमा रवियोग राजयोग अथवा कुमारयोग जेवो कोइ बलवान् शुभ योग मुहर्तना समयमा आवतो होय तो ते मुहूर्तने सारु गणे छे. आ योगो प्राचीन ज्योतिष संहिताओमा नथी, त्यां कोइमां ९ मा अने कोइमां १० मा रवियोगने उपग्रहरूपे जगावेल छे, अमने ज्यां सुधी स्मरण छे सोलमा सैका पूर्वना कोइ ब्राह्मण विद्वाने रचेला ग्रन्थमा उक्त ख्यादि योगोना उल्लेख मलतो नथी, एथी विपरीत जैनाचार्ये रचेल जुनामां जुना ग्रन्थोमा उक्त ४ योगोनो निर्देश मले छे, मध्यकालीन ज नहि सातमा सैकानो पाकश्री जेवा प्राचीन ग्रन्थमां पण उक्तपैकीना केटलाक योगो मली आवे छे, आरंभसिद्धि, नार चन्द्रादि मध्यकालीन जैन ग्रन्थोमां तो उक्त योगो योगप्रकरणना प्रसिद्ध योगो थइ पड्या छे, कुमारयोगने अंगे तो एवो उल्लेख पण मले छे के आ योग बंगाल देशथी आवेल मुनिओ लेइ आव्या छे. ब्राह्मण ग्रंथो पैकीना मुहूर्तचिन्तामणिमा वियोग तो नजरे पडे छे, पण तेमांये कुमारादियोगोनो उल्लेख सुधां नथी त्यारे शुं आ च्यारे योगो मूलमां ब्राह्मण सृष्ट नथी ? शुं आ योगो जैन साधुओथी ज प्रचलित थया छ ? विद्वान ज्योतिषीओए ए विषयमां ऊहापोह करवो घटे छे.
३-मुद्रालक्षणप्रथमखंडनो छेल्लो परिच्छेद 'मुद्रालक्षण' विषयक छ, 'मुद्राए, वास्तवमां तांत्रिकमतनी वस्तु छे पण तांत्रिक कालमां बनेल प्रतिष्ठाकल्पोमां अमारा पूर्वाचार्योए ए वस्तुनो स्वीकार कर्यो छे एटले विधिमां प्रयुक्त कराती केटलीक मुद्राओ निर्वाणकलिका, सकलचंद्रीय प्रतिष्ठाकल्पने आधारे आ परिच्छेदमां आपेली छे. आ मुद्राओने विष्णुसंहिता, नारदपंचरात्र आदि पौराणिक ग्रन्थोने आधारे तपासी
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