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विट्ठस्स निगिझिय २ बुट्टिकाए निवएज्जा कप्पइ से अहे आरामं० अहे उवस्सयं० वा उवागच्छित्तए, तत्थ नो कप्पइ एगस्स निग्गंथस्स एगाए य अगारीए एगयओ चिद्वित्तए, एवं चउभंगो, अस्थि या इत्थ केइ पंचमए थेरे वा थेरिया वा अन्नेसि वा संलोते सपडिदुवारे एवं कप्पइ एगयओ चिट्टित्तए ॥२६०॥ ऐवं चेव निग्गंधीए अगारस्स य भाणियव्यं ॥२६१॥
वासावासं पज्जोसवि० नो कप्पइ निग्गंयाण वा निगंथीण वा अपरिन्नएणं अपरिनयस्स अट्टाए असणं वा ४ जाव पडिग्गाहित्तए, से किमाहु भंते !? इच्छा परो अपडिन्नते मुंजिज्जा, इच्छा परो न मुंजिज्जा ॥२६२॥
_वासावासं० नो कप्पइ निग्गंधाण वा निग्गंथीण वा उदउल्लेण वा ससणिद्धेण वा काएणं असणं वा ४ आहारित्तए ॥ २६३॥ से किमाहु भंते ! ? सत्त सिणेहायतणा, तं जहा-पाणी पाणीलेहा नहा नहमिहा भमुहा अहरोट्ठा उत्तरोठा। अह पुण एवं जाणेज्जा-विगओअए से काए छिनसिणेहे एवं से कप्पइ असणं वा ४ आहारित्तए ॥ २६४ ॥
वासावासं प० इह खलु निग्गंधाण वा निणंथीण वा इमाई अट्ठ सुहुमाई, जाई छउमत्थेणं निगंथेण वा निग्गंथीए का अभिवण २ जाणियब्वाइं पासियब्वाइं पडिलेहियवाई भवंति,तं०-पाणसुहुमं पणगसुहुमं बीयसुहुमं हरियसुहुमं पुफसुहुमं अंडसुहुमं लेणमुहुमं सिणेहसुहुमं ॥२६५॥ से किं तं पाणसुहने ? २ पंचविहे पण्णते, तं जहा किण्हे नीले लोहिए हालिद्दे सुकिले, अस्थि कुंथू अणुद्धरी नाम जाठिया अचलमाणा छउमत्थाणं णिग्गंथाण वा णिग्गंधीण वा नो चक्खुफास हब्व
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- पतमध्यगत : पाठ : छ पर घर्तते ।। २ अपरिन्ननेणं अपरिनत्तस्स म-छ॥
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