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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विट्ठस्स निगिझिय २ बुट्टिकाए निवएज्जा कप्पइ से अहे आरामं० अहे उवस्सयं० वा उवागच्छित्तए, तत्थ नो कप्पइ एगस्स निग्गंथस्स एगाए य अगारीए एगयओ चिद्वित्तए, एवं चउभंगो, अस्थि या इत्थ केइ पंचमए थेरे वा थेरिया वा अन्नेसि वा संलोते सपडिदुवारे एवं कप्पइ एगयओ चिट्टित्तए ॥२६०॥ ऐवं चेव निग्गंधीए अगारस्स य भाणियव्यं ॥२६१॥ वासावासं पज्जोसवि० नो कप्पइ निग्गंयाण वा निगंथीण वा अपरिन्नएणं अपरिनयस्स अट्टाए असणं वा ४ जाव पडिग्गाहित्तए, से किमाहु भंते !? इच्छा परो अपडिन्नते मुंजिज्जा, इच्छा परो न मुंजिज्जा ॥२६२॥ _वासावासं० नो कप्पइ निग्गंधाण वा निग्गंथीण वा उदउल्लेण वा ससणिद्धेण वा काएणं असणं वा ४ आहारित्तए ॥ २६३॥ से किमाहु भंते ! ? सत्त सिणेहायतणा, तं जहा-पाणी पाणीलेहा नहा नहमिहा भमुहा अहरोट्ठा उत्तरोठा। अह पुण एवं जाणेज्जा-विगओअए से काए छिनसिणेहे एवं से कप्पइ असणं वा ४ आहारित्तए ॥ २६४ ॥ वासावासं प० इह खलु निग्गंधाण वा निणंथीण वा इमाई अट्ठ सुहुमाई, जाई छउमत्थेणं निगंथेण वा निग्गंथीए का अभिवण २ जाणियब्वाइं पासियब्वाइं पडिलेहियवाई भवंति,तं०-पाणसुहुमं पणगसुहुमं बीयसुहुमं हरियसुहुमं पुफसुहुमं अंडसुहुमं लेणमुहुमं सिणेहसुहुमं ॥२६५॥ से किं तं पाणसुहने ? २ पंचविहे पण्णते, तं जहा किण्हे नीले लोहिए हालिद्दे सुकिले, अस्थि कुंथू अणुद्धरी नाम जाठिया अचलमाणा छउमत्थाणं णिग्गंथाण वा णिग्गंधीण वा नो चक्खुफास हब्व १ - पतमध्यगत : पाठ : छ पर घर्तते ।। २ अपरिन्ननेणं अपरिनत्तस्स म-छ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.034664
Book TitleKalpsutra
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorPunyavijay, Bechardas Doshi
PublisherSarabhai Manilal Nawab
Publication Year1952
Total Pages255
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Book_Devnagari, & agam_kalpsutra
File Size5 MB
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