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कैसे सोचें ?
सम्भावना की स्वीकृति होती है वहां चिन्तन सम्यक् हो जाता है। वहां कोई आग्रह नहीं होता । आग्रह वहीं पनपता है जहां सम्भावना को स्वीकार नहीं किया जाता ।
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राजा ने
गलत चिन्तन का आधार है आवेश राजा खुले पैर घूम रहा था । अचानक एक कांटा चुभा । बहुत पीड़ा हुई। मंत्री से कहा-देखो, कांटे का कितना दर्द होता है ? मेरी रियासत में अनेक लोग खुले पैर चलते होंगे। उनके पैरों में कांटे चुभते होंगे। तुम ऐसा करो कि हमारे रियासत की सारी भूमि को चमड़े से मढ़ दो। फिर किसी को कांटा नहीं चुभेगा । यह एक आवेश से प्रेरित आदेश था। राजा ने नहीं सोचा, यदि सारी पृथ्वी चमड़े से मढ़ जाएगी तो अनाज पैदा कैसे होगा ? आदमी क्या खाएगा? पशु क्या खाएंगे ?
यूनान का राजा था मिडास । उसने देवता से वर मांगा- 'मैं जिसको छूऊं, वह सोने का बन जाए।' देवता ने वरदान दे दिया । अब जिस किसी पदार्थ के हाथ लगाता है, वह सोने का बन जाता है। लड़की आई दौड़ी-दौड़ी। पिता मिडास ने प्यार से उसे छुआ। वह निर्जीव हो गई। सोने की बन गई।
राजा ने भोजन को हाथ लगाया, पानी को छुआ, सब स्वर्णमय बन गए। भूख और प्यास से वह छटपटाने लगा । सोचा मैंने गलत चिन्तन किया है । गलत वर मांग डाला । देवता का स्मरण किया । देवा आया । क्षमा मांगी। बोला- देव ! मैं जैसा था वैसा ही मुझे रहने दो। अपना वरदान वापस ले लो । '
मनुष्य आवेश और तनाव की स्थिति में गलत सोच लेता है । उस स्थित में वह कभी भी सही निर्णय नहीं ले सकता । यदि यह बात पूर्णत: समझ ली जाती है तो बहुत सारे वकीलों और जजों की आवश्यकता ही नहीं रह जाती । तनाव के कारण ही व्यक्ति न्यायालय की शरण में जाता है। वहां जाने वाला भी पछताता है और नहीं जाने वाला भी पछताता है । वह बूर का लड्डू है । न खाने वाला भी पछताता है और खाने वाला भी पछताता है । यदि आवेश की स्थिति समाप्त हो जाए तो न्यायालय में चलने वाले सत्तर प्रतिशत मुकदमे वैसे ही समाप्त हो जाते हैं ।
मैंने सुना है कि पश्चिम जर्मनी में एक प्रयोग किया जा रहा है । जो व्यक्ति क्रिमिनल केस लेकर आता है, उसे एकान्त में ५-६ घंटे बिठाया जाता है । फिर उससे पूछताछ की जाती है । उन्होंने निष्कर्ष के रूप में बताया कि सत्तर प्रतिशत व्यक्ति तो बिना शिकायत किए ही लौट जाते हैं, क्योंकि वे
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