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कैसे सोचें ?
को बहुत अच्छा लगता है। चाहे जैसे भी, येन-केन-प्रकारेण भी, वह कमाकर लाता है तो अच्छा लगता है । दूसरा पुत्र बहुत प्रामाणिक है, बहुत भला है, सच्चा है, ईमानदार है, दस-बीस लाख नहीं कमा पाता । अपना जीवन चला लेता है, थोड़ा बहुत ले आता है, बचा लेता है । वह आता है पिता के पास । पिता पूछता है, कितना कमाया वर्ष भर में ?' वह कहता है-आय-व्यय समान । विशेष बचा नहीं । पिता कहता है- निकम्मे हो, जानते नहीं काम कैसे चलेगा ? कैसे शादियां होंगी ? कैसे घर का काम चलेगा ? प्रतिष्ठा कैसे बनी रहेगी ? पिता की बौछार होती है और वह निकम्मा करार दे दिया जाता है । एक लड़का तो अच्छा हो गया और दूसरा लड़का बुरा हो गया। क्यों ? हमारा चिंतन वस्तुनिष्ठ है, चेतना-निष्ठ नहीं है । यह कभी नहीं सोचा जाता कि इसने कितनी ईमानदारी से काम किया है। कितनी सचाई का अनुशीलन किया है, सचाई के आधार पर काम किया है, कितना भला है। इसने कभी किसी दूसरों को नहीं सताया, दूसरे को नहीं ठगा । चैतन्य का कोई मूल्यांकन नहीं होता, मूल्यांकन होता है वस्तु का ।
दृष्टिकोण और चिंतन जब वस्तु-निष्ठ है और फिर हम कल्पना करें कि हमारे दुःख कम हों, हम पूछें कि दुःख - मुक्ति का गुर क्या है ? सुख कैसे बढ़े ? हमारा चिंतन विधायक कैसे बने ? दूसरे के प्रति और समाज में सृजनात्मक शक्तियां कैसे बढ़ें यह कल्पना मात्र होगी ।
बड़ा जटिल प्रश्न है कि हम दूसरे के प्रति कभी न्याय नहीं करते। जब अपने प्रति भी न्याय करना नहीं जानते तो भला दूसरे के प्रति क्या न्याय करेंगे ? जो आदमी अपने प्रति न्याय करना नहीं जानता वह दूसरे के प्रति कभी न्याय नहीं कर सकता । जिस व्यक्ति का चिन्तन वस्तु-निष्ठ होता है वह अपने प्रति कभी न्याय नहीं कर सकता । वस्तु-निष्ठ चिन्तन वाला व्यक्ति परिग्रह हिंसा और असत्य में विश्वास करने वाला व्यक्ति कभी दूसरे के प्रति न्याय नहीं कर सकता । न्याय वही कर सकता है जिसकी दृष्टि में अहिंसा की प्रतिष्ठा है, सत्य की प्रतिष्ठा है और अपरिग्रह - असंचय की प्रतिष्ठा है । आज हजारों-हजारों आवाजें हमारे सामने आती हैं कि कोई दूसरे का मूल्य नहीं आंक रहा है । सदाचारी का कोई मूल्य नहीं आंक रहा है। भलाई का कोई मूल्य नहीं है। बुराई पनप रही है, भलाई नीचे जा रही है । सदाचार नीचे जा रहा है, दुराचार पनप रहा है । सब लोग परिताप व्यक्त कर रहे हैं। मानसिक व्यथा अनुभव करते हैं और व्यक्त करते हैं । पर लगता है परिताप और अभिव्यक्ति का कोई अर्थ नहीं है ।
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