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हृदय परिवर्तन का प्रशिक्षण
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नहीं छोड़ा। महामंत्री अभयकुमार से उपाय पूछा। उसने कहा- महाराज ! यदि जलकान्त मणि मिल जाए तो छुड़ाया जा सकता है, अन्यथा नहीं । जलकांत मणि का यह प्रभाव है कि पानी में उसे डालते ही रास्ता बन जाता है, पानी हट जाता है । राजा ने घोषणा कराई कि यदि कोई व्यक्ति जलकांत मणि प्राप्त करायेगा तो मैं उसे अपनी कन्या ब्याह दूंगा । बड़ी घोषणा थी ।
संयोग की बात है । एक दिन एक हलवाई के पास एक लड्डू आया था । उसमें से एक मणि निकली थी । हलवाई ने उसे पानी में डाला, साफ करने के लिए। पानी फट गया । घोषणा सुनकर वह उस मणि को लेकर दौड़ा-दौड़ा उस राजा के पास गया। अभयकुमार ने उस मणि को पहचान लिया । तत्काल उसे नदी के पानी में डाला, पानी फट गया, स्थल बन गया । मगरमच्छ कमजोर हो गया। उसकी पकड़ ढीली हो गई। हाथी कि शक्ति बढ़ गई । वह छूट गया ।
समस्या की पकड़ कितनी ही गहरी हो, समस्या कितनी ही विकट हो हमारे जीवन के सेचनक को पकड़े हुए हो, गंधहस्ती को कितना ही विकराल मगरमच्छ पकड़े हुए हो, यदि उचित युक्ति मिल जाती है तो समाधान मिल जाता है ।
प्रशिक्षण का तीसरा सूत्र है- उपाय-बोध, उपाय की जानकारी । मन बड़ा जटिल है । उसकी चंचलता कम समस्या नहीं है । बड़े-बड़े विकट काम करने वाले भी अपने मन पर काबू नहीं रख पाते । विश्व में जितनी भी बड़ी समस्याएं हैं उनमें मन की चंचलता भी एक है। मन की चंचलता को कम करना, मन को स्थिर करना, एकाग्र करना, मन रहित स्थिति का निर्माण करना, निर्विचार और निर्विकल्प स्थिति का निर्माण करना बहुत बड़ी समस्या है । सब समस्याओं से आगे की समस्या है । पर उपायय-बोध के कारण इसका भी समाधान हो जाता है ।
प्रेक्षाध्यान के शिविरों में आस्था का निर्माण होता है, आस्था का बोध होता है और उपाय की जानकारी होती है। एक घंटा ध्यान करते हैं । ध्यान पूरा होने पर साधक पूछते हैं-क्या आज ध्यान दस मिनट का ही कराया था ? ध्यान-काल में काल-बोध समाप्त हो जाता है। जहां गहन एकाग्रता होती है वहां काल-बोध समाप्त हो जाता है। देश और काल का बोध चंचलता में अधिक होता है। गहरी एकाग्रता में ये दूरियां मिट जाती हैं।
लेश्याध्यान और रंगध्यान हृदय परिवर्तन के लिए महत्त्वपूर्ण ध्यान है । यह हमारे सारे अन्तकरण को प्रभावित करता है । लेश्याध्यान के प्रयोग से गुजरने के पश्चात् अनेक साधक-साधिकाओं ने कहा- आज तो मन ऐसा जमा
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