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हृदय परिवर्तन : एक महान उपलब्धि
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विचार करता हूं। क्या मेरा विचार अन्तिम है? क्या मैंने ही सच्चाई का ठेका ले रखा है ? क्या दूसरे आदमी को सोचने का अधिकार नहीं है ? क्या दूसरा सही नहीं सोच सकता? क्या उसका विचार और व्यवहार सही नहीं हो सकता? नितिज्ञ आचार्यों ने कहा कि एक बूढ़ा या अनुभवी आदमी भूल कर सकता है और एक बालक भी सही परामर्श दे सकता है। सही बात, चाहे किसी की हो, वह मान्य होनी चाहिए। ऐसी अनेक कहानियां प्रचलित हैं जिनका सार तत्त्व है कि जहां बड़े-बूढ़े सब विफल हो गए वहां या तो छोटे लड़के ने समाधान किया या सबसे छोटी लड़की ने समाधान प्रस्तुत किया।
एक कहानी है-राजा ने अमुक परिवार के मुखिए से कहा, तुम्हें हमारे प्रश्न का उत्तर देना है, अन्यथा सारे परिवार वालों को फांसी दे दी जाएगी। परिवार का मुखिया निराश हो गया, कोई समाधान उपजा नहीं। गांव के छोटे लड़के ने समाधान ढूंढ निकाला और सारा परिवार बच गया। राजा ने कहा-मुझे बालू रेत की रस्सी की आवश्यकता है। उसे तुम जल्दी भेजो। यदि नहीं भेजोगे तो समूचे परिवार को नष्ट कर दूंगा। बड़ी अजीब बात थी। बालू की रेत की रस्सी कैसे बने ? न कभी ऐसी रस्सी के बारे में सुना न जाना। सारे लोग घबरा गए। छोटे से एक बालक ने समस्या सुनी। उसने कहा-मैं जानता हूं इसका समाधान । बड़े-बड़े लोग उसके पास पहुंचे। उसके सामने समस्या रखते हुए कहा-यह असंभव अनुष्ठान है। मौत हमें दीख रही है। क्या इसका समाधान हो सकता है ? बालक ने कहा-सब हो जाएगा। डरने की बात नहीं है। चिन्ता मत करो। सब बचे रहेंगे। मैं अकेला ही इस प्रश्न से निपट लूंगा। तत्काल उसने एक पत्र लिखा और दूत के हाथों राजा के पास भिजवा दिया। राजा ने पत्र पढ़ा। उसमें लिखा था-महाराज ! आपकी आज्ञा शिरोधार्य है। आप जैसा चाहेंगे वैसा ही होगा, वैसा ही करेंगे। एक अनुरोध है कि आपकी राजधानी बहुत बड़ी है। वहां सभी प्रकार के शिल्पी, कलाकार और अन्यान्य विद्याओं में निष्णात व्यक्ति रहते हैं। हमारा गांव छोटा है। आप कृपा कर बालू की रेत की रस्सी का नमूना भिजवाएं। हम उसी के अनुसार, आप जितनी रस्सियां चाहेंगे, उतनी बनाकर भेज देंगे।
बालक की इस सूझ-बूझ ने सारे परिवार के प्राण बचा दिए।
हम क्यों ठेकेदार बनें कि हम सोचते हैं वही ठीक है, दूसरे जो सोचते हैं वह सारा गलत है। इस ठेकेदारी को छोड़ें। सहिष्णुता का विकास अपने आप होगा। घर का मुखिया जब सही चिन्तन का ठेकेदार बन जाता है तब
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