Book Title: Kaise Soche
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 256
________________ रचनात्मक भय २४९ आध्यात्मिक दृष्टि वह होती है जहां यह प्रश्न नहीं होता कि कोई देखे या न देखे। चाहे देखे, चाहे न देखे, आध्यात्मिक दृष्टि' वाला व्यक्ति वैसा आचरण नहीं करता। व्यावहारिक दृष्टि वाला व्यक्ति यह जरूर सोचता है कि कोई देख न ले। कुछ आदमी इतने निर्लज्ज होते हैं कि वे इस बात की परवाह नहीं करते कि कोई देख लेगा। भले ही देखो, मेरा क्या लिया ? अभय भी विध्वंसात्मक हो गया। इस बात की कोई चिन्ता नहीं करते, परवाह नहीं करते। अभय भी ध्वंसात्मक हो जाता है। जो बड़े चोर, बड़े लुटेरे, बड़े मार--काट करने वाले होते हैं, उनमें भी अभय तो आता है। वे डरते नहीं, कुछ भी करने में संकुचाते नहीं, भयभीत नहीं होते। पर उनका अभय ध्वंसात्मक अभय होता है, सही अर्थ में अभय नहीं होता। ___ हमारे जीवन में, जब से जीवन प्रारम्भ होता है, बचपन से ही भाव निर्मित हो जाते हैं-अनुशासन का भाव और मानसिक संकोच का भाव। ये भाव बहुत बुराइयों से बचा देते हैं। पूज्य कालूगणीजी से एक कहानी सुनी थी। बहुत मार्मिक कहानी है। पुराने जमाने की बात है। एक युवक ने धन अर्जन के लिए परदेश के लिए प्रस्थान किया। वह अपनी युवती पत्नी से बोला-धन कमाने के लिए जा रहा हूं। तुम एक बात का ध्यान रखना, कुल की मर्यादा को बराबर बचाना। शालीन रहना, ब्रह्मचारिणी रहना। कहीं कुल पर कोई दाग न लगे, धब्बा न लगे। सावधान रहना। इतने पर भी मन बड़ा चंचल होता है, कभी किसी अवस्था में तुम्हारा मन विचलित हो जाए और तुम कभी सहवास भी करना चाहो तो एक बात का ध्यान रखना, उस व्यक्ति को खोज लाना जो शौच के लिए सबसे ज्यादा दूर जंगल में जाता हो। पत्नी ने बात मान ली। पति चला गया। पत्नी बहुत शालीन, बहुत संयमी, हर बात का ध्यान रखती, अपनी कुल-परम्परा का ध्यान रखती। बहुत वर्ष बीत गए, बहुत सावधान रही। आखिर मन की अवस्था भी एक समान नहीं रहती। बड़े-बड़े साधक, तपस्वी, दीर्घ तपस्या करने वालों का मन भी न जाने किस समय में किस स्थिति में चला जाता है और मूर्छा किस प्रकार घनी हो जाती है, कल्पना नहीं की जा सकती। जीवन भर तप तपने वाले सत्तर वर्ष तक पहुंचते-पहुंचते मूर्च्छित हो जाते हैं। जीवन-भर जागरूक रहने वाले मूछित हो जाते हैं। पर मूछित रहने वाले मरते-मरते इतने जागरूक बन जाते हैं कि लोग कहते हैं कि आदमी ने धर्म कभी किया ही नहीं, धर्म का नाम नहीं लिया, पर अन्तिम दस दिन ऐसे निकाले जैसे महान् तपस्वी का जीवन हो। इस प्रकार की स्थितियां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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