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भय की प्रतिक्रिया
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है भय । भय के कारण पागलपन को आने में सहज-सरल मार्ग उपलब्ध हो जाता है। कभी अकस्मात् ऐसा आघात लगता है, गहरी चोट लगती है कि आदमी सुध-बुध खो देता है। वह पागलपन की बातें करने लग जाता है। भय का आघात बहुत गहरा होता है। उससे आदमी पागल हो जाता है।
भय की पांच प्रतिक्रियाएं बहुत स्पष्ट हैं। और अनेक प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं, पर उनका वर्गीकरण करने पर सबका समावेश इन पांच में हो जाता है।
भय के स्रोत, भय की परिस्थितयां और भय की प्रतिक्रियाएं-इन सबके विषय में हमने जाना। उनका विश्लेषण भी किया। मात्र हमें यह जानना है कि भय से छुटकारा कैसे मिल सकता है ? भगवान् महावीर ने कहा-'मा भेतव्वं'-डरो मत। उपनिषद् कहते हैं-'मा भैषी'-डरो मत । अध्यात्म की साधना करने वाले प्रत्येक साधक ने कहा-डरो मत । यह कहना तो सरल है कि डरो मत, पर जब तक भय के स्रोत विद्यमान हैं और भय की प्रतिक्रियाएं अस्तित्व में हैं तो फिर 'डरो मत' कहने का अर्थ क्या होगा ? भय की उत्पत्ति के सारे कारण जब विद्यमान हैं तो फिर न डरने की बात प्राप्त ही नहीं होती। केवल कहने मात्र से या उपदेश से भय नहीं छूट सकता। हमें उपाय खोजना होगा। उपाय का आचरण करना होगा। उपयुक्त उपाय का अवलम्बन लेने पर 'डरो मत'-इस वाक्य की सार्थकता हो सकती है। उपायों की चर्चा आगे करेंगे।
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