Book Title: Kaise Soche
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 260
________________ रचनात्मक भय २५३ मैं यह मानता हूं कि जो भय रचनात्मक होता है, वह जीवन का निर्माणकारी होता है। मैं जो सारी चर्चा कर रहा हूं कि अभय बनो, डरना नहीं है, भय से मुक्त होना है, उसका तात्पर्य है ध्वंसात्मक भय से बचें। मैं शुद्ध अभय की चर्चा भी करना चाहता हूं। हमें शुद्ध अभय बनना है। अभय की भूमिका तक पहुंचना है और उस भूमिका तक पहुंचना है जहां शुद्ध आध्यात्मिक चेतना जाग जाए, सारे भय विलीन हो जाएं। हमारी सारी प्रेरणाएं, अन्त: प्रेरणाएं ये सारी की सारी अध्यात्म में से स्फूर्त हों, कहीं भी बाहर से प्रभावित न हों, सारी उद्दीपक सामग्रियां, सारे निमित्त और सारे हेतु विलीन हो जाएं। अध्यात्म चेतना के द्वारा हमारे जीवन का क्षण-क्षण संचालित हो। उस भूमिका पर हमें पहुंचना है, किन्तु बचपन को भी मैं जानता हूं, यौवन को भी और प्रौढ़ को भी मैं जानता हूं। अभी हम बचपन की भूमिका में जी रहे हैं और वहां आध्यात्मिक प्रेरणा की बात करूं तो स्वाभाविक नहीं होगी, प्रासंगिक नहीं होगी। प्रासंगिक यही है कि उस बचपन की भूमिका में रचनात्मक भय का आलम्बन होता है, यौवन की अवस्था में-जो साधना का यौवन है उसमें रचनात्मक भय से भी ऊपर उठकर और शुद्ध अभय की भूमिका में आरोहरण कर देते हैं। और जब अध्यात्म के शिखर पर हमारे पैर, हमारे चरण संचालित होते हैं वहां शुद्ध अध्यात्म की चेतना जाग जाती है, भय सर्वथा समाप्त हो जाता है और केवल बचता है अभय, अभय की मुद्रा, अभय का हाव-भाव, अभय की अन्त:स्रोतस्विनी, सब कुछ अभय ही अभय। सभी लोग अभय की चेतना को जगाना चाहते हैं। पर प्रश्न है, यह कैसे जागे? __ हमारे शरीर में दो तंत्र हैं-एक नाड़ी-संस्थान और दूसरा ग्रन्थि-संस्थान। हमारा सारा जीवन उनके द्वारा, नाड़ी संस्थान और ग्रथि संस्थान के द्वारा, संचालित है। बाहर की परिस्थिति और आन्तरिक रसायन-इनसे हम प्रभावित होते हैं। यद्यपि यह माना जाता है कि जैसी परिस्थिति होती है वैसा आदमी बनता है, यह सचाई भी हो सकती है किन्तु यह अधूरी सचाई है। पूरी सचाई यह है कि परिस्थिति और रसायन दोनों का योग होता है, वैसा आदमी बनता है। परिस्थिति को परिष्कृत करने के उपाय भी हम करते हैं। परिस्थिति को बदलने के उपाय भी करते हैं, किन्तु काम बनता नहीं। जब तक भीतरी रसायनों को बदलने का काम नहीं होता तब तक पूरा काम नहीं होता। हम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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