Book Title: Kaise Soche
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 261
________________ २५४ कैसे सोचें ? ज्यादा प्रभावित हैं अपने भीतरी रसायनों से, हमारे अन्दर से स्रवित होने वाले रसायनों से और वे रसायन बदलते हैं, प्रभावित होते हैं तो हम परिस्थिति को लांघकर भी जा सकते हैं, उसका अतिक्रमण भी कर सकते हैं। और जब वे रसायन अनुकूल नहीं होते तब परिस्थिति भी हमें प्रभावित कर सकती है, बाधित कर सकती है। प्रेक्षाध्यान का अभ्यास करने वाले व्यक्ति इस सच्चाई का अनुभव करें कि वास्तविकता यह है कि रसायनों को बदलने का उपक्रम करें। आज इस वैज्ञानिक युग में ध्यान करना केवल अन्धकार में ढेला फेंकना नहीं होना चाहिए। इतना विज्ञान का विकास हो चुका है, उसके सन्दर्भ को छोड़कर और केवल अंधेरे में चलते चलें, चलते चलें और सन्तोष मानते जाएं, यह संभव नहीं लगता। कल ही हमारी प्रोफेसर शर्मा से बातें हो रही थी। वे एन०सी०ई०आर०टी० में एजूकेशनल साइकोलोजी के प्रोफेसर एवं हेड हैं। डॉक्टर टी० भाटिया भी थे। बात चली। उन्होंने कहा कि ध्यान के बारे में हमारे सामने कई स्थितियां आती हैं और अधिकांश परिणाम की बात यह आती है कि तापमान कम हो गया, ब्लड-प्रेसर की बीमारी ठीक हुई, वजन घटा या बढ़ा, इस प्रकार के परिणाम सामने आते हैं। मैंने कहा-हम लोग ध्यान को चिकित्सा का साधन नहीं मानते। हम शिविर को चिकित्सालय नहीं मानते। हम स्वीकार करते हैं कि रोग भी ठीक होता है, शारीरिक बीमारी ठीक होती है, किन्तु इसे गौण मानते हैं। हमारा मुख्य उद्देश्य है भाव-परिवर्तन । जब तक भाव-परिवर्तन नहीं होता तब तक ध्यान की निष्पत्ति हमारी दृष्टि में नहीं है। हमारे भाव बदलने चाहिए। हिंसा के भाव, उदंडता के भाव, उच्छृखलता के भाव, क्रूरता के भाव-हमारे जो भाव हैं, वे भाव बदलने चाहिए। अगर भाव में परिवर्तन नहीं होता है तो मैं समझता हूं कि ध्यान की निष्पत्ति पूरी नहीं होती। उपायों के द्वारा भाव-परिवर्तन किया जा सकता है। ध्यान की ऐसी पद्धतियां हैं, जिनके द्वारा भाव का परिवर्तन किया जा सकता है। ज्योतिकेन्द्र पर ध्यान होता है, क्रोध का भाव बदल जाता है। दर्शन केन्द्र पर ध्यान होता है, मोह का भाव बदल जाता है, अन्तर्-दृष्टि जाग जाती है। हमारा 'फ्रंटल लोब' इतना महत्त्वपूर्ण है कि सारे भावों का नियन्त्रण कर रहा है। हमारे सारे भावों का नियंत्रक है-हाइपोथेलेमस । हाइपोथेलेमस पीनीगल और पिच्यूटरी पर नियंत्रण कर रहा है। पिट्यूटरी सारी ग्रन्थियों पर नियंत्रण कर रही है। हमें भाव-परिवर्तन की प्रक्रिया में जाना है तो मस्तिष्क, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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