Book Title: Kaise Soche
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 271
________________ २६४ कैसे सोचें ? एक मुनि जंगल में ध्यान कर रहे थे। वे खड़े थे। एक सांप आया और मुनि को डसकर चला गया। एक आदमी ने देख लिया। वह दौड़ा-दौड़ा आकर मुनि से बोला-'मुनिवर! अभी-अभी एक काले सांप ने आपको काट खाया है। आपको ज्ञात है ?' मुनि बोले-'मैं नहीं जानता।' वह बोला-'अरे डरे नहीं ?' मुनि ने कहा-'नहीं, डर नहीं लगा।' उसने पूछा-'भय क्यों नहीं लगा ? क्या आप मौत से नहीं घबराते?' मुनि बोले-'मैं अपने घर में था। वहां मैंने किसी सर्प को नहीं देखा। सम्भव है, किसी दूसरे को काटा हो, मुझे तो सांप ने नहीं काटा।' जब आदमी चैतन्य के अनुभव में होता है तब सांप भी काट जाता है तो सांप का जहर नहीं चढ़ता। जहर भी विशेष स्थिति में चढ़ता है। आप जानते हैं कि जब सांप काट जाता है तब घर के लोग विशेष प्रयत्न करते हैं कि नींद न आ जाए। बिलकुल जागरूक, इतना अप्रमत्त कि आंख में कोई सलवट भी न पड़े। जब जागता है जहर नहीं चढ़ता और सोया तो सो ही गया। उसे सोने नहीं देते। बिलकुल जागरूक रखते हैं। जागरूकता में जहर नहीं चढ़ता। व्यक्ति अपने चैतन्य के अनुभव में होता है, सांप का जहर क्या करेगा? कोई असर ही नहीं होगा। चैतन्य के अनुभव में अभय की मुद्रा प्रकट होती है। वहां भय नहीं होता। हम इस बात को आश्चर्य के साथ कहते हैं कि देखो, भगवान् महावीर को चण्डकौशिक जैसा सांप काट गया और भगवान् अविचल रहे। अरे, कोई आश्चर्य की बात ही नहीं है। किसी रास्ते चलते आदमी को सांप काट जाता और अविचल रहता तो आश्चर्य की बात थी, पर महावीर जैसे व्यक्ति के लिए, जो निरन्तर अपनी चेतना का अनुभव कर रहे थे, सांप काट जाए, बिच्छू काट जाए, शेर काट जाए, कोई फर्क पड़ने वाला नहीं था। महावीर के लिए यह घटना कोई बड़ी घटना नहीं थी, कोई आश्चर्य की बात भी नहीं थी। अध्यात्म की परम भूमिका का अनुभव करने वाला व्यक्ति कभी सांप के पास नहीं फटकता और सांप उसके पास नहीं फटकता। वह जहर के पास नहीं जाता, जहर उसके पास नहीं जाता। दोनों का सम्बन्ध ही नहीं जुड़ता तो आश्चर्य की कौन-सी बात है ? चेतना का अनुभव अभय की मुद्रा का अनुभव है। आनन्द का अनुभव अभय की मुद्रा का अनुभव है। हर्ष नहीं, आनन्द । आनन्द की बात कर रहा हूं, हर्ष की बात अलग है। हर्ष में तो भय आ जाता है। हर्ष और शोक-दोनों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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