Book Title: Kaise Soche
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 264
________________ अभय की मुद्रा २५७ है उसकी भूख भी कम हो जाती है। त्वचा की संवाहिता में अन्तर आ जाता है, त्वचा सूक्ष्मग्राही बन जाती है। किसी आदमी ने झूठ बोला, किसी ने अपराध किया, न्यायाधीश के सामने उपस्थित किया। उसे डर है कि मेरा झूठ पकड़ा न जाए। अब न्याय करने वालों को कैसे पता चले कि यह झूठ बोल रहा है ? उन्हें कैसे पता चले कि इसने अपराध किया है ? आजकल कुछ यंत्रों का विकास हुआ है। अपराधी खड़ा है और यंत्र चल रहा है-गेल्वेनोमीटर । सूई घूम रही है। यंत्र लगा दिया गया है। अब उसके मन में है, कहीं पकड़ा न जाऊं। भय से उत्तेजना है अन्तर् अवयवों में । उत्तेजना पैदा हो गई। वह गेल्वेनोमीटर बता देता कि यह झूठ बोल रहा है। वह बता देगा कि इसने अपराध किया है। यह सारा होता है त्वचा-संवाहिता के द्वारा। त्वचा-संवाहिता का मापन होता है और इस सचाई का पता चल जाता है। क्रोध का संवेग, भय का संवेग या दूसरा किसी भी प्रकार का संवेग हो, संवेग की अवस्था में हमारी बाहर की मुद्रा भी भिन्न बन जाती है। दोनों का पता लगाया जा सकता है। एक आदमी एक दिन में शायद सैकड़ों-सैकड़ों मुद्राएं बना लेता है। यदि कोई सूक्ष्म यंत्र या ऐसा संवेदनशील कैमरा' हो 'हाइफ्रिक्वेंसी' का, तो प्रत्येक मुद्रा का भेद मापा जा सकता है। पांच मिनट पहले जो मुद्रा थी, पांच मिनट बाद वह रहने वाली नहीं है। जैसे-जैसे भीतर में भाव बदलेगा और तत्काल मुद्रा में परिवर्तन आ जाएगा। और इसी आधार पर मुखाकृति-विज्ञान का विकास हुआ है। आकृति-विज्ञान के आधार पर मनुष्य की सारी चेष्टाओं को बताया जा सकता है, उसके भविष्य का भी निर्धारण किया जा सकता है। भय एक संवेग है, तीव्र संवेग है। जब भय की स्थिति होती है उस समय आदमी की मुद्रा दुःखद होती है, और अशांति पैदा करने वाली होती है। डरे हुए आदमी के पास कोई दूसरा जाकर बैठेगा, उसके मन में भी अचानक बेचैनी पैदा हो जाएगी। यह क्यों हुआ ? कैसे हुआ ? उसे पता नहीं चलेगा, पर वह बेचैन बन जाएगा। अभय का भाव जब-जब जागता है, तब-तब अभय की मुद्रा का निर्माण होता है। अभय की मुद्रा का बाहरी लक्षण है-प्रफुल्लता। चेहरा खिल जाएगा। बिलकुल प्रसन्नता । कोई समस्या नजर नहीं आती, कोई तनाव नहीं होता। भीतर में बिलकुल शांति। जब भय की भावधारा होती है तो हमारा सिम्पथैटिक नर्वस-सिस्टम सक्रिय होता है यानी पिंगला सक्रिय हो जाती है और जब अभय की भावधारा होती है तो पैरा-सिम्पेथेटिक नर्वस-सिस्टम सक्रिय हो जाता है. इड़ा नाड़ी का प्रवाह सक्रिय हो जाता है। उस समय कोई उत्तेजना नहीं होती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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