Book Title: Kaise Soche
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 258
________________ रचनात्मक भय २५१ दु:ख पाना पड़ेगा। यह भय रचनात्मक नहीं होगा। यह भय और ज्यादा बीमारी को बढ़ा देता है, उसे और ज्यादा कठिनाई में डाल देता है। भय रचनात्मक बनाएं। मौत से डरते हैं, मौत के कारणों से नहीं डरते। मौत तो बड़ी घबराहट है। पर आपको यह तो पता है कि राग-द्वेष करने वाले की मौत जल्दी होती है। अकाल मृत्यु उस व्यक्ति की होती है जो अधिक राग-द्वेष करता है। अधिक आहार, बहुत ज्यादा खाना, बहुत ज्यादा नींद लेना, बहुत ज्यादा प्रमादी होना, बैठे ही रहना, बहुत आवेगशील होना, अधिक अहंकार, अधिक गुस्सा, ईर्ष्या की भावना, द्वेष की भावना, मानसिक जलन-ये सारे अकाल मृत्यु के कारण हैं। अकाल मृत्यु के कारणों से तो नहीं डरते, मौत से डरते हैं। रचनात्मक भय वह होता है कि हम मृत्यु को असमय में लाने वाली प्रवृत्तियों से डरें। उनके प्रति जागरूक रहें, सावधान रहें कि हमारी जल्दी मृत्यु न आ सके। हमारा भय तब रचनात्मक हो जाता है। अकीर्ति का भय हर आदमी को लगता है कि कहीं उसका अपयश न हो, अकीर्ति न हो। आदमी डरता है, बहुत सावधान रहता है, किन्तु अकीर्ति पैदा करने वाले कारणों से भय नहीं है। बड़ी विचित्र बात है। आचरण और व्यवहार तो वैसे हैं कि जिनसे अकीर्ति पैदा हो। भय इस बात का है कि अकीर्ति हो नहीं। आचरण भले ही अकीर्ति लाने वाले हों किन्तु अकीर्ति हो नहीं-इस बात का भय है। हमारा यह भय व्यर्थ का भय हो जाता है। यदि हम प्रवृत्ति से बचें, अकीर्ति लाने वाले कारणों से बचें तो हमारा भय रचनात्मक बन जाता है। भय को रचनात्मक बनाने के लिए सूक्ष्म भेद-रेखा पर भी हमें ध्यान केन्द्रित करना होगा। और वह सूक्ष्म भेद-रेखा यह है कि भय से सुरक्षा रखना और भय के कारणों से बचना दोनों एक बात नहीं है। दो बातें हैं। एक भय और एक सावधानी बरतना कि भय पैदा न हो, एक बात नहीं है। यदि हम मान लें कि भय बुरा है तो सुरक्षात्मक व्यवस्था ही लड़खड़ा जाती है। व्यक्ति की सुरक्षा, परिवार की सुरक्षा, समाज की सुरक्षा और राष्ट्र की सुरक्षा-सारी सुरक्षात्मक व्यवस्थाएं अस्त-व्यस्त हो जाती हैं। सुरक्षात्मक व्यवस्था के लिए भय होता है, किन्तु वह रचनात्मक भय होगा, ध्वंसात्मक नहीं होगा। उसमें सूक्ष्म भेद-रेखा है कि सुरक्षा के लिए यह सब कुछ हो रहा है, किसी ध्वंस के लिए नहीं हो रहा है। सामने आग है। व्यक्ति आग पर अपना पैर नहीं रखता। भय तो मान सकते हैं कि व्यक्ति इस भय से पैर नहीं रख रहा है कि पैर रखने पर जल जाएगा। भय तो मान सकते हैं किन्तु वह भय विध्वंसात्मक भय नहीं है, रचनात्मक भय है, सुरक्षात्मक भय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274