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भय की प्रतिक्रिया
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शरीर की सारी प्रवृत्तियां प्राण के द्वारा संचालित होती हैं। पूरे शरीर में प्राण के प्रकम्पन हो रहे हैं। प्रेक्षा के द्वारा उन प्राणों के सूक्ष्म प्रकम्पनों को पकड़ना है। शरीर में मांस है, मज्जा है, चर्बी है, वीर्य है, ओज है-इस प्रकार सात धातुएं हैं या धातुओं से परे ओज की शक्ति है। प्रेक्षा के द्वारा उनमें होने वाले प्रकंपनों को पकड़ना, उनकी क्रियाओं को जानना आवश्यक होता
शरीर में अनेक बीमारियां छिपी पड़ी हैं। कुछ जन्म ले चुकी हैं, कुछ जन्म ले रही हैं और कुछ गर्भावस्था में हैं। वे इतनी परिपक्व नहीं बनी हैं कि आपको उनका अनुभव हो सके। क्या बीमारी होते ही हमें उसी दिन पता लग जाता है ? नहीं, पता बहुत दिनों, महीनों या वर्षों बाद लगता है। बीमारी भीतर गर्भाधान में पड़ी रहती है, पकती रहती है। और पककर जब वह युवा बन जाती है, तब बाहर प्रगट होती है। प्रेक्षा के द्वारा पता लगाया जा सकता है कि शरीर में कहां क्या है ?
‘एक्यूपंक्चर' चीनी चिकित्सा पद्धति है। उसमें संवादी केन्द्रों का बहुत सूक्ष्म विश्लेषण है। किसी के घुटने में दर्द है। घुटने का संवादी केन्द्र है पांव के तलवे में। पांव के तलवे के उस केन्द्र को दबाओ, यदि वहां दर्द की अनुभूति होती है तो घुटने में भी दर्द है। उस घुटने के दर्द को मिटाने के लिए तलवे के उस केन्द्र को दबाने से वह दर्द ठीक हो जाता है। शरीर के प्रत्येक अवयव का संवादी केन्द्र पैर और हाथ में है।
इस प्रकार शरीर में बहुत सारी सच्चाइयां हैं। गहराई में गए बिना उनका पता नहीं लगाया जा सकता। प्रेक्षा के प्रयोग गहराई में जाकर संवेदनों को पकड़ने और प्रकम्पनों के माध्यम से वस्तुस्थिति को जानने के माध्यम हैं।
जब हम स्थूलस्वरूप में शरीर को देखते हैं तब कुछ विशेष ज्ञात नहीं होता, किन्तु जब हम गहराई में उतर कर देखते हैं तो ज्ञात होता है कि शरीर के भीतर सैकड़ों-सैकड़ों प्रकार की भिन्न-भिन्न श्रेणियां हैं। अलग-अलग मार्ग बने हुए हैं, प्रणालियां बनी हुई हैं।
नाड़ी का अर्थ वह नहीं है जो हम समझते हैं। नाड़ी का अर्थ है-प्रणाली, रास्ता राजपथ या पगडंडी। हमारे शरीर में इतनी प्रणालियां हैं कि बड़े से बड़े नगर में भी उतनी प्रणालियां नहीं हैं, रास्ते नहीं हैं। ये सारी प्रणालियां अपना-अपना कार्य व्यवस्थित रूप से संपादित करती हैं। कोई घटना घटती है। ज्ञानेन्द्रिय के सामने आते ही वह रिफ्लेक्स होती है. प्रतिवर्त होती है। इस प्रतिवर्तवाद-(रिफ्लेक्सोलॉजी) के आधार पर मनुष्य के सारे व्यवहारों की मीमांसा की जा सकती है।
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