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भय की प्रतिक्रिया
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पाना चाहता है। यदि वह किसी व्यक्ति से प्रभावित होता है तब भी वह बिलकुल अन्धा जैसा बन जाता है और उसके पीछे दौड़ता है। यदि कोई किसी के विचारों से प्राभावित होता है तो भी यही स्थिति बनती है।
ध्यान-साधना का एक प्रयोजन है-अप्रभावित दशा का अनुभव करना, कभी किसी से प्रभावित न होना, अपनी स्वतंत्रता बनाए रखना, परिस्थिति में बह न जाना। प्रेक्षा इस दशा का निर्माण कर सकती है। जो प्रेक्षा करता है वह हर बात को गहराई में जाकर देखेगा और तब प्रवाहपाती होने वाली बात धुल जाएगी। आदमी प्रवाह में सहजतया इसलिए बह जाता है कि वह ऊपर-ऊपर से बात को पकड़ता है। घटना को ऊपर से पकड़ता है, स्थूल रूप से पकड़ता है। आदमी व्यवहारनय पर ज्यादा विश्वास करता है, गहराई में नहीं जाता, वास्तविकता तक नहीं जाता। वह जाता है और अनर्थ हो जाता
एक व्यक्ति ने गांव में आकर कहा-कुछ जैन मुनि नहर में पानी पी रहे थे। गांव वाले प्रभावित हो गए, प्रवाह में बह गए। सारे गांव में कुहराम मच गया, हो-हल्ला हो गया। जैन मुनि और नहर में पानी पीए यह कभी जैन परम्परा को मान्य नहीं हो सकता। साधु गांव में पहुंचे। उन्होंने देखा, कोई स्वागत नहीं, कोई बातचीत नहीं। सारे लोग साधुओं को अजनबी दृष्टि से देखने लगे। साधुओं ने सोचा, यह क्या? श्रावक खड़े हैं, कोई हाथ नहीं जोड़ता, वंदना नहीं करता। वे ऐसा व्यवहार कर रहे हैं, मानो कि हम उनके गुरु नहीं हैं। स्थान पर पहुंचे। कोई प्रवचन सुनने नहीं आया। पूछताछ की। एक वृद्ध श्रावक सामने आकर बोला-महाराज ! आपने कितना गलत काम किया है ? गांव निकट ही तो था। आपने नहर में पानी पी लिया ! कच्चा पानी ! इतनी भी सहनशीलता नहीं रखी ! फिर आप कहते हैं कि श्रावक क्यों नहीं आए। कैसे आते ? साधु बोले-हमने तो नहर का पानी पीया ही नहीं। उसने कहा-उस व्यक्ति ने आकर कहा था। उसे पूछा। वह बोला-मैंने उससे सुना था। पूछते-पूछते उस मूल व्यक्ति तक पहुंचे, जिसने कहा था कि साधु नहर में पानी पी रहे थे। उसे बुलाकर पूछा। उसने कहा- मैंने अपनी आंखों से देखा था कि साधु नहर में बैठे-बैठे पानी पी रहे हैं।' मुनिजी को स्थिति समझने में देर नहीं लगी। उन्होंने कहा-श्रावको ! यह तो निगाह कर लेते कि नहर में पानी बह रहा है या नहर सूखी है। हमारे पास पानी था। हमने नहर में बैठकर पानी पीया। बात में बहुत अन्तर आ गया।
सामान्यत: होता यह है कि आदमी बात सुनता है और तत्काल प्रवाह में बह जाता है। वह पूरी खोज नहीं करता। पूरा जानना नहीं चाहता।
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