Book Title: Kaise Soche
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 247
________________ २४० कैसे सोचें ? बाद दूसरा और दूसरे के बाद तीसरा रोग उभरता रहता है। उत्पादक शक्ति रोग के उत्पादन में लग जाती है। भय की दूसरी प्रतिक्रिया है-बुढ़ापा। भय के कारण आदमी बूढ़ा बनता है। जो अभय होता है, वह बूढ़ा नहीं होता। उसके बाल सफेद हो गए, फिर भी वह बूढ़ा नहीं है। वह सत्तर वर्ष का हो गया फिर भी वह बूढ़ा नहीं है। यह तो शरीर की स्वाभाविक प्रक्रिया है। ज्यों-ज्यों अवस्था बढ़ती है, केश सफेद होते हैं। यह कोई बुढ़ापा नहीं है। __वास्तव में शक्तियों का क्षीण होना बुढ़ापा है। यह बुढ़ापा भी हमारे निमंत्रण पर आता है। बिना निमंत्रण वह नहीं आता। हम जाने-अनजाने उसे बुलाते हैं और वह आता है। यूनान के प्रसिद्ध चिकित्सक और संत इगनेशिया से पूछा गया-आदमी जीवन भर स्वस्थ और युवा कैसे रह सकता है ? उसने सीधा उत्तर देते हुए कहा-अपनी भूलों को सूधारो, भ्रांतियों को छोड़ो, स्वस्थ रहोगे और जीवन भर युवा बने रहोगे। हमारी भूलें और भ्रांतियां बुढ़ापे को बुलाती हैं। जो व्यक्ति आहार-विहार में भूलें नहीं करता, वह जल्दी बूढ़ा नहीं होता। जल्दी बूढ़े बनने का एक कारण है-आहार-विहार में भूलें, रहन-सहन की भूलें। अवस्था छोटी होती है। खाने की पूरी सामग्री सामने होती है। पचाने की क्षमता भी होती है और वह सोचता है कि जितना जीभ को स्वाद दे दिया जाए, उतना ही जीवन का कल्याण है। जितना खा लिया जाए, उतना ही अच्छा है, पता नहीं अगले जन्म में मिलेगा या नहीं ? जो सर्वस्वाहा, सर्वभक्षी मनोवृत्ति है, यह बुढ़ापे का पहला निमन्त्रण है। आखिर पाचन तंत्र की जितनी शक्ति है उतनी ही है। लीवर जितना रस छोड़ता है, उतना ही छोड़ता है। पेन्क्रियाज को जितना काम करना है, उतना ही करना है। इस प्रकार पाचन-तंत्र के सारे अवयवों को जितना काम करना है, उतना ही करना है। किसी ने कहा-यह फल का रस है, संतरे का रस है, एक किलो पी लो। पानी जैसा ही तो है। पीने वाला या कहने वाला नहीं जानता कि उस रस को पचाने में पाचन-तंत्र के पास शक्ति है या नहीं? उसकी शक्ति सीमित होती है। पाचन तंत्र में हर वस्तु को पचाने की अलग-अलग शक्ति है। हमारी आंत और पक्वाशय कितना प्रोटीन, कितना कार्बोहाइड्रेट, कितना क्षार, कितना लवण और विटामिन्स पचा सकते हैं, इसकी एक निश्चित मात्रा है। इसका एक निश्चित गणित है। अनिश्चित कुछ भी नहीं है। हम नहीं जानते कि पाचन-तंत्र में पूरा विवेक है। मस्तिष्क में चाहे पूरा विवेक हो या न हो, पाचन-तंत्र में पूरा विवेक है कि किसको पचाने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ww

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