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भय की प्रतिक्रिया
प्रेक्षाध्यान प्रकाश की साधना है। प्रकाश और अभय-दोनों साथ होते हैं। अन्धकार और भय-ये दोनों भी साथ होते हैं। भय को अन्धकार और अन्धकार को भय माना जा सकता है। जीवन में जीतना भय होता है, वह जीवन का अन्धकार ही होता है। वह अन्धकार चाहे प्रकृति का हो, चाहे दृष्टिकोण का हो, चाहे जीवन का हो, है आखिर वह अन्धकार ही। अंधकार को बुरा ही क्यों मानें ? भय को बुरा ही क्यों मानें ?
यह प्रश्न स्वाभाविक है। एकांतदृष्टि से नहीं कहा जा सकता कि भय बुरा ही है। भय अच्छा भी हो सकता है। परन्तु इसका निर्णय हमें प्रतिक्रिया के आधार पर करना होगा। किस भय की कैसी प्रतिक्रिया होती है। भय दो प्रकार का होता है। भय रचनात्मक भी होता है और भय ध्वंसात्मक भी होता है। अभय रचनात्मक तो होता ही है, पर ध्वंसात्मक भी होता है। प्रत्येक तथ्य या वस्तु का विश्लेषण अनेकांत के सन्दर्भ में करना होगा।
आज जो हम भय की चर्चा कर रहे हैं, वह प्रतिक्रिया के आधार पर कर रहे हैं। जिसकी प्रतिक्रिया होती है-रोग, बुढ़ापा, मरण, विस्मृति और पागलपन-वैसा भय वर्जनीय होता है, इष्ट नहीं होता। ये पांच प्रतिक्रियाएं हैं।
___ भय की पहली प्रतिक्रिया है रोग। यह निर्विवाद तथ्य है कि हम रोग को निमंत्रित करते हैं। अनामंत्रित इतने रोग कहां से आएंगे ? घर में भी अनामंत्रित एक-दो व्यक्ति आ सकते हैं, पर पचासों व्यक्ति कैसे आ घुसेंगे ? इतने रोग कैसे आएंगे। हम उन्हें बुलाते हैं तब वे आते हैं। हम उनका इतना आदर-सत्कार करते हैं कि वे वहां से हटना नहीं चाहते हैं। रोग भय की प्रतिक्रिया है। आदमी डरता है, बहुत डरता है और डर के कारण अनेक रोगों को पाल लेता है। किसी बीमारी को देखकर दूसरा व्यक्ति भय से भर जाता है कि कहीं यह रोग मुझे भी न लग जाए ? यह विकल्प उठना ही बीमारी का पहला निमन्त्रण है। यह विकल्प प्राय: सभी व्यक्तियों में उठता है और वे रोग के भय से आक्रांत हो जाते हैं।
__ रोग से उतना दु:ख नहीं होता जितना कि भय के साथ रोग दु:खद होता है, रोगी दु:खी होता है। रोग कुछ कष्ट देता होगा पर जब वह भय से संयुक्त होता है तो कष्ट भयंकर बन जाता है और फिर सताने की बात आ जाती है। रोग अपनी संतान की वृद्धि करता है। एक के
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