Book Title: Kaise Soche
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 208
________________ हृदय परिवर्तन : एक महान उपलब्धि का विकास होता है, सभी प्राणी मित्र बन जाते हैं । कोई भी प्राणी किसी दूसरे प्राणी को सताता है तो उसके मुख्य कारण दो होते हैं- भोजन और भय । या तो भोजन के लिए सताया जाता है या भय के कारण सताया जाता है। गाय, भैंस, बैल आदि पशु आदमी को मारने के लिए दौड़ते हैं । विकराल मुद्रा बना लेते हैं। इसका क्या कारण है ? इसका एक ही कारण है कि वे डर जाते हैं जब उन्हें डर लगता है तब वे ऐसा करते हैं । यात्रापथ में हमने अनेक बार देखा कि आगे चलने वाले झंडे को देखकर गायें और भैंस चमक उठती हैं, भागती हैं और विकराल रूप बना लेती हैं । हमने सोचा ऐसा क्यों होता है? खोज करने पर ज्ञात हुआ कि ये पशु कपड़ों से नहीं डरते, रंगों से डरते हैं । पशु रंगों से बहुत भयभीत होते हैं । पशुओं में रंगों की पहचान नहीं है । पर जब रंगीन वस्तु सामने आती है तब उन्हें लगता है कि कोई विकराल जीव सामने आ गया । उसको देखते ही उनके प्राण कांप उठते हैं। वे घबराकर दौड़ने लग जाते हैं। उनके पलायन का और भयंकर मुद्रा का मूल कारण है भय । दूसरा कारण है भोजन । जब भूखे होते हैं तब आक्रमण करते हैं । किन्तु मनुष्य ने अपनी साधना और अभय की वृत्ति के द्वारा ऐसी तरंगों को निर्मित्त किया है, वह ऐसी तरंगें फैला सकता है कि उनकी सन्निधि में भूखे पशु भी आक्रमण नहीं करते और भयाक्रांत पशु भी आक्रमण नहीं करते। वे स्वयं अभय बनकर, पास में आकर बैठ जाते हैं । जब ध्यान की रश्मियां, राग-द्वेष मुक्त चेतना की रश्मियां विकीर्ण होती हैं तब सामने वाले व्यक्ति का भय समाप्त हो जाता है । अनेक चित्रों में हम शेर और बकरी को एक घाट पर साथ-साथ पानी पीते हुये देखते हैं । वह अभय का प्रतीक है । यह प्रतीक है निर्मल चित्त धारा का । जब चित्त की धारा निर्मल होती है, वीतरागता का विकास होता है तब ऐसी घटनाएं स्वाभाविक बन जाती हैं । ऐसी स्थिति में शेर और बकरी को एक ही पिंजड़े में बंद देख सकते हैं । पर यह एक दूसरी घटना है । एक आदमी प्रतिदिन चिड़ियाघर में जाता और देखता कि एक ही पिंजरे में शेर और बकरी दोनों बंधे हुए हैं। एक दिन उसने वहां के कर्मचारी से पूछा- कितनी बड़ी मैत्री ? कैसा आश्चर्य ! कैसे विकास हुआ इसका ? उसने कहा -- बाबूजी ! मैत्री कुछ नहीं है । इस पिंजरे में रोज एक नई बकरी बांधी जाती है। जब तक शेर को भूख नहीं लगती, तब तक तो बंधी रहती है, जब Jain Education International २०१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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