Book Title: Kaise Soche
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 235
________________ २२८ कैसे सोचें ? । स्थिर रह सकता है। किन्तु जिसने ध्यान का अभ्यास ही नहीं किया है, उसका ध्यान विचलित हो सकता है, जल्दी-जल्दी बदल सकता है। इस दृष्टि से मनोविज्ञान के ध्यान-विचलन के सिद्धांत से हमारी अस्वीकृति नहीं है । जो ध्यान करने के अभ्यस्त नहीं होता उसका ध्यान चार-पांच सेकण्ड से अधिक एक स्थान पर नहीं टिक सकता। संभव है प्रत्येक सेकण्ड में वह बदलता रहे । इससे भी कम समय में परिवर्तन हो सकता है। मन की गति बड़ी तीव्र है न जाने एक सेकण्ड में वह कितनी बार कहां-कहां चला जाता है। यह अंकन गलत नहीं है, किन्तु कोई भी अंकन या परीक्षण अन्तिम नहीं हो सकता । यदि हम अंतिम मान लेते हैं तो भूल होती है, ध्यान की प्रक्रिया ही समाप्त हो जाती है, निरन्तरता की बात ही समाप्त हो जाती है । फिर सारा का सारा सांतर ही सांतर होगा, निरन्तर कुछ भी नहीं होगा । प्रेक्षा करते-करते हमारी ऐसी स्थिति का निर्माण होता है कि हम एक विषय पर लगातार अवधान करने में सफल हो सकते हैं । अवधान स्थायी बन जाता है। यह मनोविज्ञान के परीक्षण का विषय नहीं बन सकता। इसका कारण भी है। जब तक लेश्या का सिद्धांत स्पष्ट नहीं होता तब तक ध्यान- विचलन का सिद्धांत भी आगे नहीं बढ़ सकता । भाव परिवर्तन होता है और भाव परिवर्तन के आधार पर विचार परिवर्तन होता है । विचार परिवर्तन का अंकन हो सकता है । भाव परिवर्तन का अंकन नहीं किया जा सकता । विचार का कोई स्वतंत्र मूल्य नहीं है। सारे विचार भावतंत्र के आधार पर पैदा होते हैं और विलीन होते हैं । I I तीन तंत्र है- विचार का तंत्र, भाव का तंत्र और अध्यवसाय का तंत्र । ये तीनों जुड़े हुए हैं । अध्यवसाय से भाव पैदा होते हैं और भाव से विचार पैदा होते हैं । विचार का अर्थ है- विचरण, गतिशील । गति का अर्थ है - चलना । जो चलता है वह है विचार और जो नहीं चलता वह है अविचार । विचार स्थिर नहीं होता, मन स्थिर नहीं होता । मन का काम है विचरण करना, चलना, गतिशील होना । मन का स्वरूप यही है। ऐसी स्थिति में हम मन को कैसे स्थिर करेंगे ? मन की दो अवस्थाएं हैं। या तो मन होगा या मन नहीं होगा । जब भाव होता है तब मन नहीं होता । यह अमन की स्थिति पैदा होती है भाव की स्थिरता के द्वारा । जब अमन होता है तब भय की स्थिति सर्वथा समाप्त हो जाती है। भय से मुक्त होने का एक उपाय है-भाव-तंत्र का परिष्कार, लेश्या का विशुद्धीकरण । जब लेश्याएं शुद्ध होती हैं, भाव- तंत्र निर्मल होता है तो भय अपने आप विलीन हो जाता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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