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कैसे सोचें ?
बिल्ली और चूहों से भी डरते हैं। सांप और बिच्छू से न डरने वाले तो बहुत ही कम हैं, सब डरते हैं। पशुजगत् से बहुत बड़ा भय होता है। कुत्ता काटे या न काटे, गाय-भैंस सींग लगाए या न लगाए, उनका भय बराबर बना रहता है। कहीं बैल और सांड खड़े हों तो आदमी बचकर निकलता है, क्योंकि उसके मन में यह भय है कि वे कहीं सींग न लगा दें, टक्कर न मार दें। यह बुद्धि में समाया हुआ है। वह सींग लगाए या न लगाए, पर सींग लगाने की कल्पना बनी रहती है, इसलिए भय भी बराबर बना का बना रहता है।
परलोक भय का अर्थ-भूत-प्रेत का भय भी है। यह बड़ा विचित्र भय है। बहुत ही अद्भुत कहानियां हैं भूत और प्रेत के भय की। इस प्रसंग में भय की दो स्थितियां और जान लेनी चाहिए। भय दो प्रकार का होता है-काल्पनिक भय और वास्तविक भय। कहीं-कहीं भय केवल काल्पनिक होता है, वास्तविक भय नहीं होता। मैंने देखा है एक आदमी को। उसका नाड़ी-संस्थान इतना दुर्बल था कि कोई आदमी सामने आता तो वह डर जाता, भय लगता कि कहीं मुझे मार पीट न दे। वह चिल्लाने लग जाता। यह है काल्पनिक भय। जैसे-जैसे नाड़ी-संस्थान की दुर्बलता बढ़ती है, वैसे-वैसे काल्पनिक भय की मात्रा भी बढ़ने लग जाती है। काल्पनिक भय का और नाड़ी-संस्थान की दुर्बलता का बहुत बड़ा सम्बन्ध है। कमजोर नाड़ी-संस्थान वालों को जाने-अनजाने, दिन और रात में, भय सताता ही रहता है। उन्हें यह जान लेना चाहिए कि उनके नाड़ी-संस्थान में दुर्बलता आ गई है और मस्तिष्कीय ज्ञान-तंतु ठीक काम नहीं कर रहे हैं।
कभी-कभी भय यथार्थ होता है, वास्तविक होता है, भय की घटनाएं होती हैं। भूत और प्रेत की बातें काल्पनिक भी होती हैं, और यथार्थ भी होती हैं। अधिकांश बातें काल्पनिक होती हैं, पर कभी-कभी उनमें कुछ वास्तविकता भी पाई जाती है। मन में एक अवधारणा बनी हुई है कि अंधेरे में भूत और प्रेत होते हैं। जैसे ही अंधेरा सामने आता है, भूत और प्रेत नाचते हुए दिखने लग जाते हैं। जिस व्यक्ति को अन्धेरे में डर लगता है वह व्यक्ति ही बता सकता है कि अकेला हो और अन्धेरा हो तो उसे लगता है कि इस संसार में भूत-प्रेत के सिवाय किसी का भी अस्तित्व नहीं है। सीढ़ियों में देखता है तो भूत खड़ा दिखाई देता है, भींत की ओर देखता है तो भूत भीत पर चढ़ते-उतरते दिखाई देता है। आमने-सामने देखता है तो भूत ही भूत दिखाई देते हैं। बड़ी अजीब परिस्थिति हो जाती है। भय कल्पनागत हो जाता है, कल्पना में समा जाता है।
___लाडनूं में वृद्ध साध्वियों का स्थिरवास है। वे जिस मकान में रहती हैं वह पीरजी का स्थान माना जाता है। यह भी माना जाता है कि पीरजी वहां
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