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भय की परिस्थिति
यदा-कदा आते हैं। यह सच भी है। एक बार साध्वियां कहीं दूसरे मकान में रह रही थीं। उस (मूल) मकान में साधु थे । एक साधु रात को १२-१ बजे कार्यवश बाहर जाने के लिए उठा और अपने स्थान से चला । एक कमरे से ज्योंही वह बाहर आया, उसने देखा कि सामने कोई बैठा है। उसके कपड़े सफेद हैं। उस साधु ने सोचा- इस समय कौन हो सकता है ? पीरजी आकर बैठे हैं। थोड़ा भय लगा, घबराहट हुई । पर सोचा, यदि डर जाऊंगा तो डर सदा के लिए कायम हो जाएगा। डरना तो नहीं है । देखूं क्या है ? कल्पना में तो पीरजी आ गए, निकट जाने का साहस बटोर कर उस दृश्य के पास गया और देखा कि वहां कोई पीरजी नहीं हैं । एक पट्ट पड़ा है और उस पर सफेद कपड़ा रखा हुआ है । दूर से वह पुरुषाकृति - सी लग रही थी, पर यथार्थ नहीं थी । कल्पना का भूत समाप्त हो गया ।
ऐसी अनेक छायाएं, अनेक प्रतिबिम्ब प्रतिदिन हमारे सामने आते रहते हैं । फिर कल्पना की तस्वीर बन जाती है, एक आकृति बन जाती है और तब लगता है कि जरूर कोई न कोई खड़ा है। आदमी डर जाता है। यह है भूत और प्रेत का काल्पनिक भय ।
कभी-कभी कोई आवाज सुनाई देती है और आदमी डर जाता है। श्मशान में दीया दीख जाए तो भूत की कल्पना साकार हो जाती है । कहीं प्रकाश दीख जाए बड़ी परेशानी हो जाती है। यदि हम काल्पनिक भय को समाप्त कर सकें तो नब्बे प्रतिशत भय से मुक्ति मिल जाती है । फिर केवल दस प्रतिशत भय शेष रहता है। मैं यह नहीं कहता कि भूत और प्रेत से सम्बन्धित भय की कहानियां सारी काल्पनिक हैं, वास्तविक भी हो सकती हैं, पर हैं वे विरल | परन्तु यथार्थ भय से डरना भी अच्छा नहीं है। उससे स्थिति और अधिक कमजोर बन जाती है। यदि आदमी का मनोबल दृढ़ रहता है तो भूत कुछ भी नहीं कर सकता । भूत और प्रेत का भय वहीं होता है जहां भय पहले से व्याप्त होता है। बिना भय व्याप्त हुए कोई किसी का कुछ बिगाड़ नहीं सकता । भगवान् महावीर ने कहा- 'भीतो भूएहिं घेप्पइ' भूत उसी को लगता है जो डरता है । जो नहीं डरता, भूत उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाते । भूत और प्रेत की मर्यादाएं होती हैं, सीमाएं होती हैं, वे हर किसी को सता नहीं सकते, हर किसी को पीड़ित नहीं कर सकते । वे उसी में समा जाते हैं, जहां उन्हें पात्र मिलता है। अपात्र में वे कभी नहीं जाते । पात्र कौन होता है ? भूत और प्रेत का पात्र होता है भीत आदमी, डरा हुआ आदमी । जो डरा हुआ है वह उसका सही पात्र होता है, और इसका बहुत बड़ा प्रमाण है कि स्त्रियों को जितने भूत लगते हैं, पुरुषों को उतने नहीं लगते। स्त्रियां भूत-प्रेत से अधिक
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