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कैसे सोचें ?
यह ठेकेदारी असहिष्णुता पैदा करती है। इससे कलह और कदाग्रह बढ़ता है। यदि बुद्धि या अक्ल की इस ठेकेदारी को समाप्त कर देते हैं तो सहिष्णुता का विकास हो सकता है। तब यह सोचने का अवसर मिलता है, मैं उसे समझू, वह मुझे समझे। मैं उसे सहन करूं, वह मुझे सहन करे। जब एक-दूसरे को सहने का विकास होता है जब शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व फलित होता है। मनुष्य समाज ने सहिष्णुता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का विकास किया है।
हृदय-परिवर्तन का महत्त्वपूर्ण सूत्र है-सहिष्णुता का विकास और सहिष्णुता के विकास के द्वारा शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का विकास।
हृदय-परिवर्तन का चौथा सूत्र है-करुणा का विकास। पशु समाज में क्वचित् करुणा का उदाहरण मिल जाता है, पर सभी पशुओं में करुणा का विकास नहीं देखा जाता। ... एक घटना पढ़ी थी। एक विदेशी व्यक्ति के पास कुत्ता था। वह बहुत समझदार था। वह प्रतिदिन थैला लेकर बाजार में जाता और एक निश्चित दुकानदार से बारह डबलरोटियां थैले में डलवाकर ले आता और मालिक को सौंप देता। यह प्रतिदिन का क्रम था। कुछ दिन बीते। अब मालिक ने देखा कि बारह डबलरोटियों के बदले ग्यारह ही आ रही हैं। मालिक ने सोचा, एक रोटी कहीं गिर जाती होगी। प्रतिदिन ऐसा ही होने लगा। एक रोटी की कमी की खोज की तो पता चला कि रास्ते में एक बीमार कुतिया बैठी रहती थी। वह चल-फिर नहीं सकती थी। कुत्ता बारह रोटियों में से एक रोटी उसे दे आता और शेष ग्यारह रोटियां मालिक को सौंप देता।
__ पशुओं में कहीं-कहीं ऐसे करुणा के उदाहरण मिलते हैं। अपने बच्चों के प्रति वात्सल्य भी पशुओं में प्राप्त होता है। कहीं-कहीं मां की ममता का उत्कृष्ट उदाहरण पशुओं में प्राप्त होता है।
एक शिकारी हरिणी को मारने लगा। उसने अपने धनुष पर बाण चढ़ाया। निशाना साधा। इतने में ही हरिणी ने कहा
“आदाय मांसमखिलं स्तनवर्जितांगाद्, मां मुञ्च वागुरिक ! यामि कुरु प्रसादम् । अद्यापि सस्यकवलग्रहणादभिज्ञाः, मन्मार्गवीक्षणपरा: शिशवो मदीया:।।"
-हे शिकारी ! तुम मेरे पूरे शरीर के मांस को ले लो, पर दोनों स्तनों को छोड़ दो। शिकारी ने पूछा-क्यों ? वह हरिणी बोली- देखो, मेरे दोनों
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