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कैसे सोचें ?
मुझे अपनी बात याद या रही है। मेरी अवस्था छोटी थी। मैं मुनि बन चुका था। एक दिन मैं रात को बैठे-बैठे नींद ले रहा था। भीत का सहारा ले रखा था। अचानक एक मुनि आए, मुझे जगाया। मैं डर गया और वहां से दौड़ कर आंगन में आ रुका। जानते हुए या जागृत अवस्था में नहीं दौड़ा, नींद में ही दौड़ पड़ा।
_नींद में भी आदमी डरता है और उस भय से बच निकलना चाहता है। भय की स्थिति में रहना कभी नहीं चाहता। वह भय से पार चला जाना चाहता है। स्वभाविक है। यही कारण है कि बहुत बार सुनते-पढ़ते हैं कि अमुक का लड़का या भाई घर से पलायन कर गया, अमुक की स्त्री या पति भाग गया। इस पलायन के पीछे भय ही मुख्य कारण बनता है, फिर चाहे वह भय मान-प्रतिष्ठा का हो या धन-दौलत का या प्रेम-परीक्षा का हो।
पलायन करना प्रवृत्ति है। कुत्ते को देखकर आदमी दौड़ता है और आदमी को देखकर कुत्ता दौड़ता। दोनों दौड़ते हैं। वह इससे और यह उससे डरता है। दोनों एक दूसरे से डरते हैं। कुत्ता इसलिए काटता है कि वह आदमी से डरता है और आदमी इसलिए दौड़ता है कि वह कुत्ते से डरता है।
भय का काम है पलायन कर जाना । भय के समय में कुछ विशेष प्रकार की प्रतिक्रियाएं होती हैं। भय के प्रतिरोध के लिए अधिक शक्ति जरूरी होती है। जिस समय भय का संवेग जागृत होता है उस समय एड्रीनल बहुत सक्रिय हो जाता है। अधिक शक्ति चाहिए। एड्रीनल का स्राव अतिरिक्त नहीं होता है तो शक्ति नहीं होती। जैसे-जैसे भय का संवेग बढ़ता है, एड्रीनल का स्राव भी बढ़ता है, उससे शक्ति बढ़ती है और तब दौड़ने की, प्रतिरोध करने की भावना आ जाती है। यह अनुकूल तथ्य है कि भय की स्थिति में जितनी शक्ति होती है, सामान्य अवस्था में उतनी शक्ति नहीं होती। एक डरा हुआ आदमी जितनी अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर सकता है, सामान्य अवस्था में नहीं कर पाता। उस समय विचित्र शक्ति जाग जाती है।
एक व्यक्ति बैठा था। रात का समय । अन्धेरा गहरा हो रहा था। वह नींद लेने लगा। अचानक डर लगा। डर का आघात हुआ मस्तिष्क पर । दौरा पड़ गया। वह कहने लगा-देखो, देखो, उस कोने में भूत खड़ा है, इस कोने में भूत है। वे सब मेरी ओर आ रहे हैं।' दूसरों ने समझाया-'कुछ नहीं है। शांत रहो।' वह समझा नहीं। उसी प्रकार भूत दीखने की बात करता रहा। उसका हाथ पकड़कर उठाने का प्रयत्न किया। किन्तु उस समय उसके शरीर में इतनी शक्ति आ गई थी कि दस आदमी भी उसे उठाने में असमर्थ थे।
___ यह शक्ति कहां से आई ? न वहां कोई भूत था और न प्रेत । कुछ भी नहीं था। उस व्यक्ति का एड्रीनल ग्लैण्ड इतना सक्रिय हो गया कि उसका
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