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कैसे सोचें ?
यह तीसरे प्रकार का रोग सूक्ष्म शरीर की बीमारी है। वहां न कोई कीटाणु हैं, न जर्मस् हैं, न वात, पित्त और कफ हैं, कुछ भी नहीं। वह कर्म से उत्पन्न है। वह कर्मज-रोग है, केवल कर्मज-रोग। वह पुराने संस्कारों के कारण उत्पन्न होता है।
अन्ततम का परिवेश है, तीसरा आयाम। हम तीनों आयामों-स्थूल, सूक्ष्म और सूक्ष्मतर में प्रस्थान करें। एक आयाम में हम न अटकें, न उलझें । हम दूसरे आयाम में जाएं और फिर तीसरे में प्रवेश करें। तीनों आयामों में जाकर ही हम अपने व्यक्तित्व को पूरा व्याख्यायित कर सकते हैं और समाधान पा सकते हैं।
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