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हृदय-परिवर्तन के प्रयोग
एक आदमी दूकानदार के पास जाकर बोला-'तुम्हारे पास आटा है ?' उसने कहा-है।' 'फिर पूछा-चीनी है ?' दूकानदार बोला-है।' फिर उसने पूछा-'घी है ?' दूकानदार ने कहा-है।' ग्राहक बोला-'अरे ! भले आदमी तुम्हारे पास आटा है, चीनी है, और घी है फिर तुम हलुआ बनाकर क्यों नहीं बेचते ? हलुए में तीन चीजें ही प्रयुक्त होती हैं और ये तीनों तुम्हारे पास हैं।
दूकानदार बोला-'भाई साहब ! हलुआ बनाने की सारी चीजें मेरे पास हैं, पर हलुआ बनाने की युक्ति मेरे पास नहीं है। मैं नहीं जानता कि हलुआ कैसे बनाया जाता है ? यदि बिना जाने हलुआ बनाने बैलूंगा तो आटा भी खराब होगा, चीनी और घी भी खराब होगा। न हलुआ ही बनेगा और न ये चीजें ही सुरक्षित रह पाएंगी। फिर न आटा आटा रहेगा, न चीनी चीनी रहेगी और न घी घी रहेगा। हलुए के अतिरिक्त और कुछ बन जाएगा।' . हर निर्माण में युक्ति की आवश्यकता होती है। युक्ति को जाने बिना कुछ भी निर्माण नहीं किया जा सकता।
हम हृदय के परिवर्तन की चर्चा कर रहे हैं। हृदय का परिवर्तन होना चाहिए, यह काम्य है परन्तु यदि हृदय-परिवर्तन की युक्ति ज्ञात नहीं है, प्रक्रिया ज्ञात नहीं है तो हृदय-परिवर्तन के स्थान पर पैर का परिवर्तन हो सकता है, और कुछ परिवर्तन हो सकता है।
चेतना का रूपांतरण करना छोटा कार्य नहीं है, बहुत बड़ा कार्य है। मैं मानता हूं, जितने भी बड़े कार्य हैं, उन सबसे बड़ा कार्य है चेतना का रूपांतरण। चेतना का रूपांतरण ही हृदय का परिवर्तन है। जब चेतना बदलती है तो हृदय बदल जाता है। चेतना नहीं बदलती है तो कुछ भी नहीं बदलता। युक्ति को जाने बिना चेतना का रूपांतरण नहीं हो सकता।
हमारे सामने दो कार्य हैं-चेतना को बदलना और आदमी की चेतना को बदलना। दोनों बड़े कार्य हैं। भौतिक जगत् के लिए अनेक नियम खोजे गए, बनाए गए, परन्तु चेतना-जगत् के लिए सार्वभौम नियमों की खोज करना बड़ा जटिल कार्य है। वस्तु अचेतन है। अचेतन के नियमों की खोज सरल है,
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