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कैसे सोचें ?
लिखने में लीन देखा तो चुपचाप एक ओर खड़ा रह गया । पत्नी अपने प्रियतम को पत्र लिख रही है और वह प्रियतम उसके पास खड़ा है । पत्र पूरा हुआ। उसने उसे समेटा लिफाफे में डाला । उस पर पता लिखा और प्रसन्नता में मुंह ऊपर किया । देखा तो पास में प्रियतम खड़े हैं ।
बहुत बार ऐसा होता है । सचाइयां सामने पड़ी होती हैं पर आदमी सचाइयों की खोज में ध्यान-मग्न हो जाता है। उसे पता ही नहीं चलता कि जिसे खोजा जा रहा है वह सचाई तो सामने पड़ी है। आदमी उसे जान नहीं पाता, व्याख्या नहीं कर पाता ।
अनेक आदमी कान बिंधाते हैं । स्त्रियां कान और नाक- दोनों बिंधाती हैं। नक्र- वेधन और कर्ण - वेधन-दोनों होते हैं, पर उन्हें इस वेधन का कारण ज्ञात नहीं है । वह व्यवहार है, इसका अनेक प्रान्तों में प्रचलन भी है, परन्तु इस व्यवहार की पृष्ठभूमि किसी को ज्ञात नहीं है । स्त्रियों के नक्र- वेधन और कर्ण - वेधन का मुख्य कारण था कि वासना पर नियन्त्रण रखा जा सके । वासना उच्छृंखल न बने, कामना उच्छृंखल न बने, इसलिए यह एक उपाय सोचा गया था । यह उपाय वैज्ञानिक है । स्त्री के कान और नाक जहां से बींधें जाते हैं, वहां सूक्ष्म ग्रन्थियां हैं और वे ग्रन्थियां काम-वासना को उत्तेजित भी करती हैं। उनके वेधन से उस उत्तेजना की सघनता में परिवर्तन आता है और तब कामवासना नियन्त्रित हो जाती है । यह वैज्ञानिक तथ्य आंखों से ओझल हो गया और बहिनों ने मान लिया कि कान बींधे जाते हैं कर्णफूल पहनने के लिए और नाक बींधा जाता है नथ पहनने के लिए । आभूषणों की ओट में मूल बात छिप गई ।
आदमी का कान इसलिए बींधा जाता है कि उसके अंडकोशों की वृद्धि न हो, आंत की वृद्धि न हो। यह मुख्य दृष्टिकोण था कर्ण - वेधन का । पर बात विस्मृति में चली गई और पुरुषों ने मान लिया कि कान बींधा जाता है आभूषण पहनने के लिए, बाली पहनने के लिए । आजकल तो पुरुष कान बिंधाते ही नहीं ।
आदमी किसी एक प्रवृत्ति का आचरण करता चला जाता है, पर उसके यथार्थ को नहीं समझता । प्रत्येक के पीछे सचाई होती है। जब वह सच्चाई हाथ से छूट जाती है। तब वह प्रवृत्ति रूढ़ि बन जाती है ।
सब श्वास लेते हैं । कोई छोटा श्वास लेता है, कोई बड़ा श्वास लेता है और कोई कोरा श्वास लेता है। तीनों के तीन अर्थ हैं। लंबा श्वास लेने का एक अर्थ होता है। छोटा श्वास लेने का एक अर्थ होता है और कोरा श्वास लेने का एक अर्थ होता है । हम श्वास लेते हैं पर श्वास लेने का अर्थ नहीं
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