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कैसे सोचें ?
जो व्यक्ति आनंद-केन्द्र को सक्रिय करने में सक्षम हो जाता है वह यह निश्चित अनुभव कर लेता है कि बाहरी और भीतरी जगत् के बीच सम्पर्क स्थापित करने का यह सबसे शक्तिशाली माध्यम है। इस माध्यम से सूक्ष्म जगत् में प्रवेश करना सहज हो जाता है।
हम प्रेक्षाध्यान के परिपार्श्व में आकर निरुपाय या असहाय नहीं हैं। हमारे दोनों हाथों में घोड़े हैं। हमारे पास सिद्धांत की यथार्थता है तो उपाय की भी यथार्थता है। एक ओर हम सिद्धांत के सत्य का प्रतिपादन करते हैं, हमारी अंगुली सत्य की ओर इंगित करती है तो साथ-साथ उस सत्य की उपलब्धि के लिए उपायों की ओर भी निर्देश करती है। प्रत्येक सिद्धांत की क्रियान्विति के लिए उपाय हैं और वे सब कार्यकर उपाय हैं, अनुभूत उपाय हैं।
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