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हृदय परिवर्तन का प्रशिक्षण
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दो आदमी जा रहे थे। रास्ते में नदी आ गई। पानी गहरा था । एक व्यक्ति नदी के तट पर खड़ा रह गया। दूसरा व्यक्ति नदी में उतरा और देखते-देखते दूसरे तट पर पहुंच गया । ऐसा क्यों होता है ? नदी को पार करना एक समस्या है। एक खड़ा रह गया, दूसरा पार कर गया । कोई बड़ी समस्या नहीं है । जिसने तैरने का प्रशिक्षण ले रखा था, वह तैर गया। जो प्रशिक्षण से शून्य था, वह तट पर ही खड़ा रह गया । प्रश्न है प्रशिक्षण का । जीवन में अनेक समस्याएं आती हैं। नदी से भी भयंकर समस्याएं आती हैं। नदी को पार करना आसान होता है । इन समस्याओं को पार करना बहुत कठिन काम है, पर प्रशिक्षित आदमी उन सभी समस्याओं को पार पा जाता है । जिसका मस्तिष्क और हृदय प्रशिक्षित नहीं है वह तट पर ही खड़ा रह जाता है । पार नहीं पहुंच पाता। दूसरा तट उसे कभी नहीं मिल पाता। जीवन में प्रशिक्षण का बहुत महत्त्व है । जो कार्य सामान्य आदमी नहीं कर सकता, प्रशिक्षित आदमी वह कार्य कर लेता है । नाट्य, कलाएं, कौशल और शिल्प तथा कर्म- ये सब प्रशिक्षण-सापेक्ष हैं। सारे कार्य प्रशिक्षण के द्वारा सम्पन्न हो जाते हैं। प्रशिक्षण नहीं होता है तो सुई में धागा पिरोना भी समस्या बन जाती है। हर कोई व्यक्ति सुई नहीं पिरो सकता। हर बात समस्या बन जाती है । बड़ी-छोटी, सभी समस्याओं का पार प्रशिक्षण के द्वारा ही पाया जा सकता है । जो आदमी रोटी बनाना नहीं जानता, उसे रसोई में बिठा दिया जाए तो खाने वालों को कुछ भी नहीं मिलता ।
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केवल मनुष्य ही नहीं हाथी, घोड़े, बंदर और कुत्ते भी प्रशिक्षित किए जाते हैं । इनके करतबों को देखकर आदमी चकित रह जाते हैं। हम इस बात को अस्वीकार नहीं करेंगे कि प्रशिक्षण हमारे समूचे जीवन पर एकाधिकार जमाए हुए है । कोई व्यक्ति धार्मिक बन जाता है और प्रशिक्षण नहीं लेता है तो बड़ी आश्चर्य की बात होती है । जैसे मंत्री बनने का अधिकार भी बिना प्रशिक्षण के है, वैसे ही लगता है कि धार्मिक बनने का अधिकार भी बिना प्रशिक्षण के है। माना जाता है कि धार्मिक के लिए प्रशिक्षण की कोई आवश्यकता ही नहीं है । यह भ्रान्ति है । अप्रशिक्षित धार्मिक धर्म का भी बहुत भला नहीं करता और अपना भी भला नहीं करता
हृदय परिवर्तन की चर्चा हो रही है, पर प्रशिक्षण के बिना हृदयय-परिवर्तन कैसे होगा। इसके लिए बहुत कठोर प्रशिक्षण की जरूरत है । इस प्रशिक्षण के
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