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विधेयात्मक भाव
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बीमार व्यक्ति को कुछ शब्द दे देते हैं और उनको बार-बार दोहराते रहने का निर्देश देते हैं। उठते-बैठते, सोते-जागते उन शब्दों को दोहराने की बात कहते हैं । यह इसलिए कि सतत दोहराने से स्मृति बनी रहती है और बीमारी का परिणाम कमजोर होने लग जाता है तथा आरोग्य का परिणमन प्रारंभ हो जाता है। आयुर्वेद का सूत्र है-'काल: परिणाम:' । काल का अर्थ है-परिणाम। काल का परिणमन प्रारम्भ हो जाता है।
विधायक भावों को जगाने के लिए सतत स्मृति की प्रक्रिया बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसका प्रयोग कर हम विधायक भावों को प्रधान बना सकते हैं और निषेधात्मक भावों को गौणता दे सकते हैं।
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