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हृदय परिवर्तन के प्रयोग
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जानते, इसलिए हमें जो सत्य उपलब्ध होना चाहिए वह उपलब्ध नहीं होता। श्वास लेने का एक अर्थ जीना हो सकता है, पर केवल जीना ही नहीं है। श्वास लेने का वास्तविक अर्थ है-बाहर और भीतर-दोनों जगत् से संपर्क बनाए रखना। श्वास बाहर भी जाता है भीतर भी,जाता है। हमारे शरीर में संभवत: यही एक ऐसी व्यवस्था है, जिसका बाहर और भीतर-दोनों से संपर्क जुड़ा हुआ है।
हम चंचलता को मिटाना चाहते हैं । युक्ति हमारे सामने पड़ी है। युक्ति को अन्यत्र ढूंढने की आवश्यकता नहीं है। श्वास की युक्ति को काम में लें। यही सबसे बड़ी युक्ति है। जैसे ही श्वास प्रेक्षा प्रारम्भ होगी, चंचलता धीरे-धीरे कम होती चली जाएगी। जैसे-जैसे श्वास की साधना सधती जाएगी, वैसे-वैसे एकाग्रता बढ़ती जाएगी। यह तो कहना सर्वथा अतिशयोक्तिपूर्ण होगा कि पांच-दस दिन के श्वास-प्रयोग से चंचलता मिट जाएगी। पर यह निश्चित कहा जा सकता है कि श्वास के प्रयोग के माध्यम से चंचलता पर नियन्त्रण स्थापित किया जा सकता है। इसमें कोई संदेह नहीं है। श्वास-प्रेक्षा के प्रयोग को लम्बे समय तक चालू रखा जाए तो एक दिन वह साधक यह कहने की स्थिति में आ सकेगा कि मन की चंचलता पर मेरा पूरा नियन्त्रण है। मैं चाहूं तो सोचूं, मैं न चाहूं तो न सोचूं। मैं चाहूं तो स्मृति और कल्पना करूं और न चाहूं तो स्मृति और कल्पना न करूं, निर्विकल्प बन जाऊं।
मैं कोरे सिद्धांत में विश्वास नहीं करता। सिद्धांत हो और मार्ग न हो तो वह सिद्धांत किस काम का ? कोरे परिवर्तन की बात कहें और उपाय न बताएं तो वह निकम्मी बात होगी, दीनता की बात होगी। जो दीनता की स्थिति में नहीं जाना चाहता, उसे उपाय खोजना होता है। हमें उपाय उपलब्ध है। हम दीन नहीं हैं। परिवर्तन की बात करते हैं और साथ-साथ सही उपाय भी बतलाते हैं।
एक महात्मा ने लम्बा-चौड़ा भाषण दिया और परिषद् से बदलने की बात कही। उन्होंने कहा-हमको सत्यवादी होना है, अक्रोधी होना है, क्षमाशील होना है, अमायावी और अलोभी होना है. आदि-आदि। एक आदमी ने पूछ लिया-'महाराज ! होने वाली बात आपने बहुत अच्छी कही। कैसे हुआ जाए, इसका भी कुछ निर्देश दें।' इस प्रश्न के आते ही सब मौन, महात्माजी मौन और दूसरे श्रोता भी मौन । सारा वातावरण मौनमय बन गया।
एक ओर बदलने की बात है, सिद्धांत की बात है। दूसरी ओर निरुपायता है। यह तो एक ऐसा ही योग है, एक हाथ में घोड़ा और एक हाथ में गधा । बदलने की बात बहुत अच्छी है, सचाई है, यथार्थ है। यह तो रेस
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