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हृदय परिवर्तन के सूत्र (१)
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हमें अपनी परिस्थितियों की भीतरी कारण भी खोजने होंगे। हमारे सारे व्यवहारों के भीतरी कारणों को खोजना होगा । एक आदमी क्रोध कर रहा है। एक आदमी प्रेम प्रदर्शित कर रहा है। एक आदमी भय से भीत हो रहा है, डरा जा रहा है, अकारण ही डरा जा रहा है। एक आदमी गालियां बक रहा है। एक आदमी चुगली कर रहा है। एक आदमी जाने-अनजाने मन से बेचैन हो रहा है। कोई कारण नहीं । उदास, खिन्न, बेचैन, बिना कारण निराश होकर चला जा रहा है। ये जो सारे व्यवहार हैं, इन व्यवहारों की व्याख्या केवल बाहरी परिस्थितियों के आधार पर नहीं की जा सकती। इन सारे व्यवहारों की व्याख्या करने के लिए भीतरी परिस्थितयों को भी जानना जरूरी होता है, किन्तु बाहरी परिस्थितियों के साथ-साथ आन्तरिक परिस्थितियों को जानना ज्यादा जरूरी होता है। ये सारे व्यवहार बाहरी परिस्थितियों से भी प्रभावित होते हैं, किन्तु ज्यादा प्रभावित होते हैं हमारी आन्तरिक परिस्थितियों से और जब तक आन्तरिक परिस्थितियों का बोध हमें नहीं होता तब तक इन व्यवहारों की व्याख्या नहीं हो सकती और उन्हें बदला नहीं जा सकता । हर आदमी बदलना चाहता है, बेचैनी को दूर करना चाहता है, बहुत प्रसन्न रहना चाहता है, निराशा को दूर करना चाहता है, तनाव को दूर करना चाहता है। डरना कोई नहीं चाहता। एक भाई ने बताया कि मुझे डर लगता है तो सारे डर के ही सपने आते हैं । कभी बाघ दिखता है, कभी शेर दिखता है तो कभी भालू दिखता है, कभी नदी दिखती है। ऐसे लगता है कि नदी में डूबा जा रहा हूं । इतने भयंकर सपने आते हैं। क्या करूं ? इन सपनों से अपना पिंड छुड़ाना चाहता हूं। डरना कोई नहीं चाहता है । अपनी कमजोरी दूर करना चाहता है । मनोबल की कमी से बचना चाहता है । मन इतना कमजोर हो जाता है कि हर बात सामने भंयकर लगने लगती है। छोटी-सी समस्या, राई जितनी समस्या होती है, ऐसा पहाड़ खड़ा हो जाता है । कि घुटने टिक जाते हैं, पर बदलें कैसे ? बदलने के लिये पहले तो आन्तरिक परिस्थितियों को जानना जरूरी होता है कि कौन-सी परिस्थिति किस प्रकार के वातावरण का सृजन कर रही है ? फिर बदलने का उपक्रम करना जरूरी होता है ।
भाव का परिवर्तन, विचार का परिवर्तन और रसायन का परिवर्तन-ये तीन आन्तरिक परिवर्तन हैं। पहले भाव का परिवर्तन करना होगा । भाव बदलेगा तो विचार बदलेगा । विचार से भाव नहीं बनता किन्तु भाव से विचार बनता है । कुछ लोग गलत व्याख्याएं कर देते हैं । मैंने अभी पढ़ा, आज ही पढ़ा कि आदमी का विचार बनता है और विचार से भाव बनता है। बड़ी उल्टी
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