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हृदय-परिवर्तन के सूत्र (२)
अभी हम लोग मन्दिर के प्रांगण में बैठे ध्यान कर रहे थे। ध्यान करते समय मेरे मन में एक प्रश्न उठा-इतना प्रयत्न क्यों ? इतना समय क्यों लगायें? क्या होगा? क्या करना है ? केवल एक ही काम करना है मन को सुलझायें । समस्यायें बहुत हैं। हमारी यथार्थ की दुनिया में असंख्य समस्यायें हैं और हम केवल मन के पीछे दौड़ लगा रहे हैं। इसका परिणाम क्या होगा? फिर समाधान मिला कि सारी समस्याओं से बड़ी समस्या है-चंचलता। एक माता ने कहा-"मेरा बेटा बहुत चंचल है।' चंचल बेटा माता के लिए पेरशानी का करण बनता है। वह माता को परेशान कर देता है। माता चाहती है चंचलता मिटे । चंचलता बुरी बात ही नहीं होती चंचलता जरूरी भी होती है। यदि पेड़ न हिले, पत्तियां न हिलें तो गर्मी का अनुभव होगा। पत्तियां हिलती हैं, मन में संतोष होता है कि हवा चल रही है और ठण्ड कर रही है। यदि मन न चले, बड़ी समस्या हो जाती है। मौन करना बहुत अच्छा है पर जो बच्चा बोलना शुरू नहीं करता तो माता-पिता सब चिन्तित हो उठते हैं कि दो वर्ष का हो गया, तीन वर्ष का हो गया, अभी बोल नहीं रहा है। डॉक्टरों के चक्कर लगने शुरू हो जाते हैं । चंचलता बेकार ही नहीं होती उसका भी अपना उपयोग होता है। शरीर न चले, बड़ी परेशानी हो जाती है। यदि अंगुली न हिले, पैर न हिले तो आदमी सोचता है कि क्या हो गया ? कहीं पक्षाघात तो नहीं हो गया ? बड़ी कठिनाई हो जाती है। बहन ने ध्यान किया और ध्यान की गहराई में चली गई। जब ध्यान पूरा हुआ पैर नहीं हिले, हाथ नहीं हिले, लोग घबड़ा गए आस-पास वाले। क्या हो गया ? कुछ भी नहीं हुआ था। पर चंचलता बहुत जरूरी मानी जाती है, व्यर्थ नहीं पर चंचलता का एक बिन्दु है, निश्चित बिन्दु । एक सीमा तक चंचलता जरूरी है और सीमा के बाद चंचलता को कम करें और इसीलिए करें कि हमारा साध्य सिद्ध हो सके। मन की ज्यादा चंचलता होती है तो साध्य सिद्ध नहीं होता। हृदय-परिवर्तन हमारा साध्य है। हम हृदय को बदलना चाहते हैं । जब तक चंचलता कम नहीं होती, हृदय का परिवर्तन कैसे होगा ? एक बात कही, यह काम करो यह मत करो। बात सुन ली, पर मन इतना चंचल है कि तरंगें उठीं, इतनी तरंगें उठीं कि जो सिद्धांत पढ़ा था, जो बात सुनी थी, वह तो कहीं रह गई, चंचलता की ओट में छिप गई और आदमी कहीं आगे चला गया। कोई भी सिद्धांत तब
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