________________
१५२
कैसे सोचें ?
में प्रवृत्त रहता है और बुरे आचरण करता रहता है ? प्रश्न का उत्तर मिलता है कि आदमी में वस्तु के प्रति अतिरिक्त आकर्षण है। सन्तुलन बिगड़ा हुआ है। मन का संतुलन ठीक नहीं है। जिसका मानसिक संतुलन ठीक नहीं होता वह गालियां भी बक सकता है, चांटा भी मार सकता है, उपद्रव भी कर सकता है क्योंकि बेचारे का संतुलन ठीक नहीं है। वह विक्षिप्त है, पागल है। इतना ज्यादा आकर्षण हो गया वस्तु के प्रति कि वस्तु चाहिए। जब वस्तु मिलती है तो वस्तु के लिए ये सारे काम किए जा सकते हैं और वस्तु न मिले तो उसके लिए सारी कठिनाइयां पैदा हो जाती हैं। वस्तु के प्रति जब तक इतना आकर्षण है तब तक हृदय-परिवर्तन की बात नहीं सोची जा सकती। हृदय-परिवर्तन के लिए हमें सच्चाई को देखना होगा।
एक आदमी ने लालटेन जलाई अन्धकार को मिटाने के लिए। दूसरा आदमी आया, लालटेन को ठोकर लगा दी। वह लुढ़क गई। उसका कांच फूट गया। वह बोला-लालटेन को जलाने से क्या होगा ? लालटेन को देखने के लिए आंख चाहिए। कोरी लालटेन जलाने से ही काम कैसे चलेगा ? आंख चाहिए लालटेन को देखने के लिए।
लालटेन का प्रकाश है, आग का प्रकाश है, दीये का प्रकाश है, बिजली का प्रकाश है, सूरज का प्रकाश है, चांद का प्रकाश है। सबका प्रकाश है, पर एक आंख का प्रकाश यदि नहीं है तो सारे के सारे प्रकाश अन्धकार में बदल जाते हैं। कोई फर्क नहीं पड़ता। सबसे बड़ा है हमारी आंख का प्रकाश जो प्रकाश को पकड़ सके, प्रकाश को ग्रहण कर सके। जब प्रकाश को ग्रहण करने वाला प्रकाश नहीं होता तो सारी बातें अन्धकार में बदल जाती हैं। जब तक यह भीतर की चेतना नहीं जागती, ध्यान की चेतना नहीं जागती, ध्यान का प्रकाश प्रस्फुटित नहीं होता तो बाहर के प्रकाश, सिद्धांतों के प्रकाश-ये सारे प्रकाश अन्धकार में बदल जाते हैं। चाहे फिर वह महावीर के सिद्धान्त का प्रकाश हो, चाहे बुद्ध के सिद्धान्त का प्रकाश हो, चाहे कृष्ण के सिद्धांत का प्रकाश हो, चाहे दुनिया के किसी महापुरुष या अवतार के सिद्धान्त का प्रकाश हो। कितना ही बड़ा सिद्धान्त हो, सूरज हो, चांद हो, आंख के बिना सारी बातें व्यर्थ हो जाती हैं। चाणक्य ने ठीक कहा था
'यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा, शास्त्रं तस्य करोति किम् ? लोचनाभ्यां विहीनस्य, दर्पण: किं करिष्यति ?'
जिसकी अपनी प्रज्ञा नहीं है उसके लिये शास्त्र क्या करेगा ? शास्त्रों में तो बहुत अच्छी बातें लिखी हुई हैं और शास्त्रों में जितनी बातें लिखी हुई हैं उनके अनुसार आज आदमी चलता तो समाज का रूप ही दूसरा होता।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org