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कैसे सोचें ?
का तात्पर्य है-मध्यस्थ रहना, सामायिक में रहना। राजा नाराज हो गया। वजीर था सर्वेसर्वा । बहुत अधिकार संपन्न, सारे राष्ट्र का काम देखने वाला। राजा रुष्ट हुआ तो ऐसा रुष्ट हुआ कि वजीर को फांसी का हुक्म दे दिया । सारे शहर में तहलका मच गया। जिस दिन फांसी का हुक्म हुआ, वह वजीर का जन्म-दिन था। वजीर का जन्म-दिन मनाया जा रहा था। गाजे, बाजे और नाच हो रहे थे। सैकड़ों लोग परिवार के तथा मित्र, सुहृद् सब इकट्ठे हो रहे थे। पूरा मेला-सा लग रहा था। बीच में ही एक आदेश पहुंचा कि आज शाम को वजीर को फांसी लगा दी जाये। सारा गाना बन्द हो गया, नाचना बन्द हो गया, बाजे बन्द हो गए, हर्ष और उल्लास जो बरस रहा था, सारा बन्द हो गया। दु:ख छा गया, शोक छा गया। सारे लोग बड़े उदास हो गये। वजीर ने देखा और पूछा, अरे ! यह क्या ? बाजे क्यों बन्द कर दिए? नाचना क्यों बन्द हुआ ? मित्रों ने कहा-'शाम होते-होते आपको फांसी लगनी है। हम तो शोक में डूब गये, फिर ये कैसे चलें ?' वजीर बोला-'मूर्ख हो तुम सब । मरना है तो उदास होकर क्यों मरना है ? मरना है तो क्या दु:खी होकर मरना है ? सब चालू करो। फिर नाचना, गाना, बजाना चालू कर दिया। वैसा का वैसा, जैसा पहले चल रहा था। उसके मन में कोई चिन्ता नहीं, कोई उदासी नहीं, कोई भय नहीं। एक शिकन भी चेहरे पर नहीं पड़ी। जैसे का तैसा। बादशाह ने पता करवाया कि क्या हो रहा है ? जन्म-दिन मनाया जा रहा था, उत्सव किया जा रहा था, रंग-राग हो रहा था। अब तो मातम छा गया होगा? क्या हो रहा है पता नहीं। फांसी की कोई बात ही नहीं है। वहां तो रांग-राग, अठखेलियां हो रही हैं। ऐसा उत्सव मनाया जा रहा है जैसे कोई आज ही जन्मा हो, बहुत प्रतीक्षा के बाद बच्चा जन्मा हो। सचमुच ऐसा हो रहा है। कुछ भी शोक नहीं है। बादशाह ने अपने सिर पर हाथ रखा और कहा-जो जीना जानता है उसे मारने से क्या लाभ ? फांसी का आदेश रद्द कर दिया कि वजीर को मारने का कोई अर्थ ही नहीं। उस व्यक्ति को तो मारने में मजा आता है जो जीना नहीं जानता। जो जीना जानता है उसे मारने में भी कोई मजा नहीं आता। मारकर ही क्या करेंगे ? फांसी टल गई।
जो अभय की साधना कर लेता है, अप्रमत्त बन जाता है, जिसे किसी भी घटना का भय नहीं होता वह वास्तव में अहिंसा को उपलब्ध हो सकता है, हृदय-परिवर्तन को उपलब्ध हो सकता है। अहिंसा की साधना में भगवान् महावीर ने सबसे ज्यादा बल अभय पर दिया था। उन्होंने कहा कि जो अभय नहीं हो सकता वह अहिंसक नहीं हो सकता। जो अभय नहीं हो सकता वह साधना-शुद्धि का प्रयोग नहीं कर सकता। जो अभय नहीं हो सकता उसका
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