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परिवेश का प्रभाव और हृदय परिवर्तन
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परिस्थिति भी आदमी को प्रभावित करती है। इन दोनों के साथ-साथ अन्तरतम की परिस्थिति का प्रभाव भी व्यक्ति पर पड़ता है ।
जब अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के स्राव रक्त के साथ मिलते हैं, तब व्यवहार प्रभावित होता है और आदमी विचित्र प्रकार के व्यवहार करने लग जाता है । हम समझ नहीं पाते। बड़ी कठिनाई होती है। कभी-कभी बच्चे के अतिरिक्त व्यवहार को देख माता-पिता भी उलझ जाते हैं। गुरु भी शिष्य के व्यवहार से उलझ जाते हैं और हितैषी भी कठिनाई में पड़ जाते हैं। एक घर का सारा वातावरण स्वच्छ और सुलझा हुआ है । कोई कठिनाई नहीं है । फिर भी माता- -पिता को भान होता है कि लड़का बिगड़ता जा रहा है। ऐसा क्यों होता है ? प्रश्न उभर आता है । पर इस प्रश्न का समाधान खोजा जा सकता है । यह सही है कि बाहरी परिस्थिति अनुकूल है और उस परिस्थिति में लड़के का वह बिगाड़ संभव नहीं है । इस स्थिति में आन्तरिक परिस्थिति पर ध्यान केन्द्रित करना होगा। यह देखना होगा कि बीमारी पहले स्टेज में है, दूसरे में है या तीसरे में पहुंच चुकी है । यदि पहले स्टेज की बीमारी है तो उसकी चिकित्सा यह होनी चाहिए कि बाहरी वातावरण को बदला जाए, जिससे कि बच्चा अच्छा बन सके। जब यह ज्ञात हो जाये कि बीमारी पहले स्टेज की नहीं है, सब अनुकूलताएं हैं, और वह बीमारी दूसरे स्टेज में पैर रख चुकी है, तो भीतरी परिस्थिति पर ध्यान केन्द्रित करना होगा ।
मनोविज्ञान में 'टेम्पर टेन्ट्रा' नाम की बच्चों की बीमारी है । वह दो-तीन वर्ष के बच्चों में होती है। इस बीमारी के कारण बच्चा असाधारण व्यवहार करने लग जाता है। उसका सारा व्यवहार अस्वाभाविक होता है । वह बहुत गुस्सा करने लगता है, रोता है, चिल्लाता है, मारने दौड़ता है, वस्तुओं को इधर-उधर फेंक देता है, मचलता है, और भी अनेक चेष्टाएं करने लग जाता है । ये सारी चेष्टाएं वह यों ही नहीं करता । वह एक बीमारी है, I जो बच्चों में ही होती है । यदि इस बीमारी को न समझा जाए तो बच्चा बिगड़ जाता है । इस स्थिति में बच्चा बाहरी साधनों से स्वस्थ नहीं होता। यदि माता-पिता समझदार होते हैं तो वे बच्चों को पीटेंगे नहीं, गालियां नहीं केंगे ।
कुछेक माताएं सारे दिन बच्चों को गालियां देती रहती हैं, बुरा भला कहती रहती हैं, मारती रहती हैं। यह बच्चों को बिगाड़ने की मशीन है, जो बराबर चल रही है। इस प्रक्रिया से बच्चे बिगड़ते हैं, सुधरते नहीं । वे बच्चे इतने बिगड़ जाते हैं कि बड़े होकर माता-पिता को भी चेतावनी दे देते हैं । यह अनर्थ अज्ञान के कारण होता है। आदमी नहीं जानता कि बच्चों
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