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दूसरे के बारे में अपना दृष्टिकोण
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अहिंसा की प्रतिष्ठा तब तक नहीं हो सकती जब तक वस्तु-निष्ठ चिंतन रहेगा। सत्य की प्रतिष्ठा तब तक नहीं हो सकती जब तक चिन्तन वस्तु-निष्ठ होगा। अपरिग्रह की प्रतिष्ठा तब तक नहीं हो सकती जब तक चिंतन वस्तु-निष्ठ है। जब तक अपरिग्रह, सत्य और अहिंसा की प्रतिष्ठा नहीं होगी तो 'पर' के प्रति, दूसरे के प्रति, हमारा चिंतन विधायक नहीं हो सकेगा।
विधायक चिंतन के लिए बहुत जरूरी है कि जीवन में, समाज में, अहिंसा और अपरिग्रह के मूल्यों का विकास हो और उसके लिए जरूरी है कि 'पर' के स्वतंत्र अस्तित्व का मूल्यांकन हम कर सकें, दूसरे की स्वतंत्रता का मूल्यांकन कर सकें । हम कितना लाभ उठाते हैं दूसरे के द्वारा ? एक आदमी दूसरे आदमी से कितना लाभान्वित होता है ? आज विज्ञान की एक नई शाखा विकसित हुई है और उसके परिणाम, उसके निष्कर्ष बहुत अद्भुत हैं। जो पर्यावरण का सिद्धांत सामने आया है, उसके आधार पर देखें तो हमारा सारा दृष्टिकोण विधायक हो सकता है। प्रकृति का एक कण भी इधर से उधर होता है तो सारे जगत् की व्यवस्था गड़बड़ा जाती है।
'चूहों को समाप्त कर दिया जाए' यह आन्दोलन चल रहा है। पर चूहे समाप्त हो जाएंगे तो सैकड़ों समस्याएं पैदा हो जाएंगी। एक किसी जीव-जाति को समाप्त किया जाता है तो सैकड़ों समस्याएं खड़ी हो जाती हैं।
मक्खियां निकम्मी नहीं हैं। मनुष्य जाति के लिए वह बहुत उपयोगी हैं। मच्छर भी मनुष्य जाति का बड़ा उपकार करते हैं। ये डंक भी मारते हैं पर मनुष्य जाति के लिए बड़े उपयोगी भी हैं। जितने छोटे जीव-जन्तु नुकसान पहुंचाने वाले हैं, वे आदमी का भला भी करते हैं। चूहे बहुत हैं, लगता है अनाज खा जाते हैं, नुकसान करते हैं, किन्तु चूहे मनुष्य का भला भी कितना करते हैं। चूहे समाप्त होते हैं तो बिल्लियां भी समाप्त होती हैं। चूहे समाप्त होते हैं तो बहुत सारे कीटाणु नष्ट करने वाली जातियां समाप्त होती हैं। इतना सारा जुड़ा हुआ है। प्रकृति का एक कण दूसरे कण से जुड़ा हुआ है। एक धागा कभी कोई काम नहीं कर सकता। हजारों-हजारों धागे जुड़ते हैं, कपड़ा बनता है। ओढ़ने के काम आता है। बोरा बनता है। वह वजन डालने के काम में आता है। न जाने कितना उपयोग होता है। एक पागा होता तो धागा ही रह जाता और जब सारे धागे जुड़ जाते हैं तो बहुत उपयोगी बन जाते हैं। ___हमारी सारी दुनिया एक जोड़ है। कोई तोड़ नहीं है। मात्र एक योग है। योग से ही सारा जीवन चलता है। जगत् में, प्रकृति में जितनी जीव-जातियां
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