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कैसे सोचें ?
मिताहार, मौन या मित भाषण करेंगे। ये पांचों प्रयोग अहिंसा के प्रयोग हैं। अहिंसा के प्रयोग किए बिना कोई मितभाषी, मिताहार या संयम करने वाला नहीं हो सकता। जिसके जीवन में अहिंसा का प्रयोग नहीं होता वह मैत्री का प्रयोग नहीं कर सकता। अहिंसा का विकास हुए बिना प्रतिक्रिया से विरति नहीं हो सकती और जिसके जीवन में अहिंसा का विकास नहीं है वह वर्तमान में नहीं रह सकता। वह प्रिय और अप्रिय संवेदन से मुक्त क्षण में नहीं जी सकता। यह ध्यान की सारी की सारी साधना अहिंसा की साधना है। इसलिए ध्यान के संदर्भ में अपने आचार और व्यवहार की समीक्षा करना और अपना आत्मालोचन करना, बहुत महत्त्वपूर्ण बात है।
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